बुधवार, 25 अक्टूबर 2023
पोथी चर्चा, बीहनि कथा संग्रह - तोहर कतेक रंग
सोमवार, 23 अक्टूबर 2023
गजल
खड़ाम पैरमे नहि अकास मोनमे छल
कुहास बहुत बाहर इजोत टोनमे छल
टएरकेँ चलाबी गरीब तेँ बुझू नहि
हमर अपन सगर धन अहाँक लोनमे छल
किएक आनके दुख बुझत चलाक नेता
हुनक सगर बुढ़ापा तँ सेफ जोनमे छल
सिनेह शांति सबटा जगतसँ गेल हेरा
अखनसँ नीक बेसी मनुष्य बोनमे छल
पतंग पाछु भागैत मनुक हर्ख देखू
पुतौह केर जेना बहिनसँ फोनमे छल
(मात्राक्रम 121-2122-121-2122, सभ पाँतिमे)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
शनिवार, 12 अगस्त 2023
गजल
भहरल भीत नै उठाउ यौ पाहुन
जर्जर टाट नै सटाउ यौ पाहुन
खाली छाड़बै उछेहबै भरि दिन
चार चुबैत नै बचाउ यौ पाहुन
पाकल काँच जेहने धरे भरिमे
बाहर नाक नै कटाउ यौ पाहुन
धधकै आगि खड़ खड़ेल पजरल छै
पाइन ढारि नै जराउ यौ पाहुन
सगरो खाम गेल सड़ि हबेलीके
‘मनु’केँ हँसि क नै बजाउ यौ पाहुन
(मात्राक्रम 2221-212-1222, सभ पाँतिमे। दोसर शेरकेँ, दोसर पाँतिमे दू टा लघुकेँ दिर्घ मानक छूट लेल गेल अछि)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
गुरुवार, 15 जून 2023
गजल
अहाँ सुनबै जँ नहि हम केकरा कहबै
पिया जुलमी हमर दुख हम कते सहबै
सखी बहिना अहाँके प्रेममे छूटल
पिया हम आब कोना असगरे रहबै
निहोड़ा आब करु हम कोन विधि सजना
सगर उसरैग एही भक्त पर ढहबै
विरहके आगिमे जरि मरि रहल छी हम
अहाँ आइब करेजामे कखन गहबै
रहत नेहक वचन नै यादि ‘मनु’ जा दिन
जहर माहुर अछैते पानिमे बहबै
(बहरे हजज, मात्रा क्रम 1222-1222-1222)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
बुधवार, 1 मार्च 2023
गजल
बितल जे संग ओ सगरो खुशी गानब
करेजामे नुकोने छी कतेको दुख
हमर सामर्थ जे मुँहपर हँसी आनब
जहर पी दर्द के हम चिन्हलौ दुनियाँ
नदीमे ठेल सिखने लोक अछि छानब
द कर्जा मांगि देखू एक दिन ककरो
सगर दुनियाँक माया छन्नमे जानब
सिनेह प्रेम दोस्ती नाम मतलबकेँ
कपट ‘मनु’ भेषमे सब एतए दानब
(बहरे हजज, मात्राक्रम : 1222-1222-1222)
शनिवार, 18 फ़रवरी 2023
भक्ति गजल
चलू देखब हे बहीना शिवकेँ
अपन गौरीकेँ सजनमा शिवकेँ
सभक ई खाली भरै छथि झोली
सरण आइब जे सुमरला शिवकेँ
गरीबोकेँ छथि इहे सुननाहर
दियौ जल भरि एक लोटा शिवकेँ
मनुख दानव देव भूत प्रेतो
सगर दुनिया मिल मनेला शिवकेँ
सिया रामोकृष्ण हुनके पुजलनि
बनेलनि सगरो अराध्या शिवकेँ
कृपानिधि कैलाशवासी जय भव
चरण वंदन जग रचैता शिवकेँ
मनोरथ सब पूर्ण करता शम्भू
कहल ‘मनु’ जे मनसँ भजता शिवकेँ
(मात्राक्रम- 1222-2/ 1222-2)
सुझाव, मार्गदर्शन व आलोचना सादर आमंत्रित अछि।
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
रविवार, 5 फ़रवरी 2023
गजल
जखन कखनो जे सोचब हमरा
अपन लअगेमे पायब हमरा
गजल हमर शव्द बनि तनमनमे
कचोटत तँ अहाँ ताकब हमरा
बहुत दुर छी कोनो बाते नै
अपन मोनेमे देखब हमरा
दुनू दू तन एक्के जिनगी छी
अहाँ कखनो नै बिसरब हमरा
अहाँकेँ हम छी कहलौं जे ‘मनु’
कि मुइला बादो मानब हमरा
(बहरे गोविंद, मात्राक्रम : 12 22 22 22 2, सभ पाँतिमे। दोसर शेरकेँ दोसर पाँतिमे दूटा अलग-अलग लघुकेँ दिर्ध मानक छुट लेल गेल अछि)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
रविवार, 29 जनवरी 2023
गजल
दर्द देखायब करेजाक मानब की
काल्हि सपनोमे हँसी छोरि कानब की
प्रेम पुरुषक छैक गोबर अहाँ कहलौं
चीर देखायब करेजा तँ गानब की
दोख सभमे नै कतउ एकमे हेते
संग हमरा ओहिमे सभक सानब की
आइ छै अन्हार सगरो अहाँ कहलौं
आँखि मुनि लाइटसँ अन्हार आनब की
कनिक हमरोपर भरोसा क कय देखू
प्रेम ककरा छै कहै 'मनु'सँ जानब की
(बहरे कलीब, मात्राक्रम : 2122-2122-1222)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
शनिवार, 14 जनवरी 2023
जगदानन्द झा ‘मनु’क पच्चीस टा रुबाइ एक्केठाम
आँचर नहि उठाबू आँखिसँ पीबय दिअ
हम जन्मसँ पियासल करेज जुड़बय दिअ
के कहैत अछि निसाँ शराबमे बड़ अछि
कनी अपन प्रेमक निसाँमे जीबय दिअ
रुबाइ 2
हम पीलौं तँ लोक कहलक शराबी अछि
कहू एतअ के नहि बहसल कबाबी अछि
बुझलौं अहाँ सभ दुनियाक ठेकेदार
हमरो आँखिसँ देखू की खराबी अछि
फाटल करेजकेँ हम सीब कोना कय
सगरो जमाना भेल दुश्मन शराबक
सबहक सोंझा तँ आब पीब कोना कय
बिन पीने ई दुनियाँ भेल अछि कटाह
जे नहि पीलक कहाँ अछि ओकरो महल
तँ पिबिए क' किएक नहि बनि जाइ घताह
दर्शन हुनक हरदम गिलासमे केलौं
के कहैत अछि शराब छैक खराब ‘मनु’
बिन हुनक रहितौं शराबे सँ हम जीलौं
ढोलक धम-धमा-धम बजैत किएक छै
घुँघरू खन-खना-खन खनकैत किएक छै
दुनू भीतरसँ छैक एक्केसन खाली
दुनू अपन गप्प नहि बुझैत किएक छै
पीलौं नहि तँ की छै शराब बूझब की
बिन पीने दुनियाँमे करब तँ करब की
एक दोसरकेँ सभ अछि खून पीबैत
खून छोड़ि शराबे पी कय देखब की
गोरी तोहर काजर जान मारैए
छौंरा सभ सगर हाय तान मारैए
पेएलक बड़ भाग काजर विधातासँ
तोहर आँखिमे कते शान मारैए
काजर बुझि कय अपन आँखिमे बसा लिअ
मित बना कय कनीक करेजसँ लगा लिअ
ऐना जुनि अहाँ कनखी नजरि घुमाऊ
आँखिक अपन करीया काजर बना लिअ
भरि जीवन हम अहीँक बाटमे रहितहुँ
मुस्कीमे अहाँक अपन मोन लूटा क’
तरहत्थीपर जान लेने हम अबितहुँ
दोसरक करेजा तोरि हँसै सभ कियो
अपना पर जे बिपति एलै कएखनो
माथा पकडि हिचुकि-हिचुकि कनै सभ कियो
सुख चैन निन्न रातिकेँ अपन हरेलौं
गाम घरक सबटा सऽर संबंध तियागि
बिन कसूरे बाहर वनवास बितेलौं
साउध लोककेँ मोन लेने मोहि अछि
धर्मक नाम पर खुजल कतेक दोकान
टाका लs छनमे सभटा पाप धोहि अछि
बाबूजीक करेजमे सदिखन रहलहुँ
हुनक तन मन धन सगरो हम पेएलहुँ
रौद पानि दाहीसँ सदिखन बचेलन्हि
सेबाक बेड़मे हम परदेश भगलहुँ
जे किछु छी एखन बाबूजी केलन्हि
अपने रहि भूखे हमर पेट भरलन्हि
सुधि अपन बिसरि हमरा मनुख बनेलन्हि
जे जन्म देलन्हि ओ कहलन्हि गदहा
जे पोसलन्हि ओ मानलन्हि गदहा
गदहा जँका सगरो जिन्दगी बितेलहुँ
जिनका बियाहलहुँ ओ बुझलन्हि गदहा
मैथिली साहित्यक आँच सुलगैत अछि
सगरो नव विधाक ज्वला पजरैत अछि
कोटी नमन जिनकर बिछल जारैन अछि
विदेहक बारल आगि 'मनु' लहकैत अछि
सिस्टम आइकेँ किए बबाल बनल अछि
नेता सभ तँ एकटा जपाल बनल अछि
बड़ बड़ बागर बिल्ला राज चलबैए
जनताक प्राणेपर सबाल बनल अछि
गामक अधिकारी भेला सैंया हमर
कोना क पकड़तै कियोक बैंया हमर
सभक पेटीक माल आब हमरे छैक
सैंया लऽ लेथिन सभटा बलैंया हमर
साँवरिया पिया अहाँ ई की कएलहुँ
साउन चढ़ल छोड़ि चलि कोना गएलहुँ
बहल हवा शीतल सिहरैए हमर तन
कोना रहब बिनु अहाँ बुझि नै पएलहुँ
गोरी तोर मुस्कीमे छौ जहर भरल
नै एना मुँह खोल कते घायल परल
जँ निकैल गएलौ फूलझड़ी सन हँसी
बाटपर भेटत कतेको छौंड़ा मरल
नैन्हेटा हाथमे केहन लकीड़ छै
नै माय बाप ई केहन तकदीर छै
धो धो कऽ ऐँठ कप लकीड़ो खीएलै
नै सुनलक कियो ई दुनियाँ बहीर छै
कर्जा कय क जीवन हम जीव रहल छी
फाटल अपनकेँ कहुना सीब रहल छी
सभ किछु लूटा कय ‘मनु’ अपन जीवनकेँ
निर्लज जकाँ हम ताड़ी पीब रहल छी
अभिमन्यु जकाँ चक्रव्यूहमे फसलौं
नै बचब सिख हम अर्जुन बनि पेएलौं
'मनु' जीवनकेँ एही महाभारतमे
सगरो ठार हम कौरव केर देखलौं
हम जरैत छी की अहाँ प्रकाशित रही
अहाँक सुख लेल खुशीसँ हम आँच सही
बातीकेँ जरैत ई दुनिया देखलक
तेल बनि हम तँ जरलौं दुख कतेक कही
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
गुरुवार, 5 जनवरी 2023
गजल
भगवती जकर माए ओ टुगर कहल कोना
हाथ छै दुनू भेटल रंक ओ रहल कोना
माथ पर हमर सदिखन जखन हाथ मैयाकेँ
एहिठाम रहलै कोनो कठिन टहल कोना
लेब छोरि कखनो देबाक बात कनि सोचू
सगर गाम देखू सुख शांति नहि बहल कोना
शेरकेँ घरे बैसल नहि शिकार भेटै छै
घरसँ जे निकलबै नहि घर बनत महल कोना
काज नहि अपन हिस्सा केर ‘मनु’ करी हम सब
ई सहज सगर दुनिया नहि बनत जहल कोना
(मात्राक्रम : 212-1222/ 212-1222 सभ पाँतिमे)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
मंगलवार, 27 दिसंबर 2022
रुबाइ
नेह पजाड़ल अहाँक धधैक रहल अछि
एसगर करेज हमर तड़ैप रहल अछि
कोन लगने अहाँसँ ‘मनु’ नेह लगेलौं
प्रेमक गरमीसँ देह बरैक रहल अछि
© जगदानन्द झा ‘मनु’
रविवार, 25 दिसंबर 2022
रुबाइ
घुमि अहाँ कनखीसँ कनि जे ताकि देलहुँ
अपन तन मन एहि पर हम हारि देलहुँ
आब नहि बैकुंठकेँ रहि गेल इच्छा
‘मनु’ अहाँके लेल सगरो बारि देलहुँ
© जगदानन्द झा ‘मनु’
बुधवार, 21 दिसंबर 2022
रुबाइ
धाब जे अहाँ हमर करेजकेँ देलहुँ
ओ सबटा दर्द दुनियाँसँ नुका लेलहुँ
मुस्कीसँ हमर नै बुझू जे हम खुश छी
अहाँक खुशी लेल नोरकेँ पी गेलहुँ
© जगदानन्द झा ‘मनु’
बुधवार, 14 दिसंबर 2022
गजल
जखन सगरो दर्द भेटल
अपन सीलौं ठोर रेतल
द’बल अपने हाथ गरदनि
तखन के ई नोर मेटल
घरक बन्हन छोरि दुनिया
सटल जतए नोट गेटल
भरोसा करु आब कोना
लखन भेषे चोर फेटल
दहेजक ‘मनु’ चारिचक्का
बियाहक पहिनेसँ सेटल
(बहरे मजरिअ, मात्राक्रम 1222-2122)
जगदानन्द झा ‘मनु’
शनिवार, 10 दिसंबर 2022
हमरा तँ चिन्हते होएब ?
हम- “हेलो”
उम्हरसँ- “के ? मनु।”
हम– “जी”
उम्हरसँ खूब खिसीयाति- “ई की अहाँ सभ फ़ेसबुकपर उल्टासिधा लिखैत रहै छी ? एक दू, एक दू। हम सब तँ भरि ज़िंदगी घास छिललौं।”
हम – “अपने के ?”
उम्हरसँ- “हम सा रे गा मा, हमरा तँ चिन्हते होएब ?”
हम – “हाँ”
उम्हरसँ- “कतेक ?”
हम – “जतेक अहाँ हमरा चिन्है छी।”
की ओ झट फोन राखि देला।
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’