प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक गजल
बसल मोन ओ श्वास जकाँ
गरल कोंढ ओ फाँस जकाँ
हम बुझी मजरल आम
ठार ओ तs भेला बाँस जकाँ
बनि एता बयार शीतल
बहल ओ जेठ मास जकाँ
गमकैत एता ओ सुगन्धे
आएल ओ तेल झाँस जेकाँ
सुनबा चाहि ध्वनि मधुर
बाजल ओ स्वर टाँश जकाँ
प्रेमक आश थोर भs गेल,
भs गेल सबटा नास जकाँ
(सरल वार्णिक वहर, वर्ण-१० )
रुबी झा
मैथिली साहित्य आ भाषा लेल समर्पित Maithiliputra- Dedicated to Maithili Literature and Language
सोमवार, 26 मार्च 2012
गजल
कनि मनमे बसा तँ लिअ
प्रेमक लय लगा तँ लिअ
हम जन्मेसँ छी टुगर
नै हमरा कना तँ लिअ
सदिखन छी अहाँ हमर
ई हमरो जता तँ लिअ
बीते राति नै दिवस
आ जीवन बचा तँ लिअ
कोना जीब बिन अहाँ
प्राणेश्वर बना तँ लिअ
अछि ई नोर विरहके
संयोगक सजा तँ लिअ
‘मनु’केँ छी अहाँ सदति
ई सभकेँ बता तँ लिअ
(मात्राक्रम : 2221-212)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
लेबल:
गजल,
जगदानन्द झा 'मनु'
गजल@प्रभात राय भट्ट
अप्पन आन सभ लेल अहाँ चिन्हार बनल छि
आS हमरा लेल किएक अनचिन्हार बनल छि
अहाँ एकौ घड़ी हमरा विनु नहीं रहैत छलौं
आई किएक हम अहाँ लेल बेकार बनल छि
कोना बिसरल गेल ओ प्रेमक पल प्रीतम
हमरा बिसारि आन केर गलहार बनल छि
हमर प्रीत में की खोट जे देलौं हृदय में चोट
अहाँक प्रीत में आईयो हम लाचार बनल छि
दिल में हमरा प्रेम जगा किया देलौं अहाँ दगा
दगा नै देब कही कs किएक गद्दार बनल छि
..................वर्ण:-१८............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
आS हमरा लेल किएक अनचिन्हार बनल छि
अहाँ एकौ घड़ी हमरा विनु नहीं रहैत छलौं
आई किएक हम अहाँ लेल बेकार बनल छि
कोना बिसरल गेल ओ प्रेमक पल प्रीतम
हमरा बिसारि आन केर गलहार बनल छि
हमर प्रीत में की खोट जे देलौं हृदय में चोट
अहाँक प्रीत में आईयो हम लाचार बनल छि
दिल में हमरा प्रेम जगा किया देलौं अहाँ दगा
दगा नै देब कही कs किएक गद्दार बनल छि
..................वर्ण:-१८............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
रविवार, 25 मार्च 2012
गजल
रूबी झाजिक गजल बहरे-रमल में----
घोघ हुनकर उतरि गेलै
चान सूरज पसरि गेलै
आँखि काजर भरल हुनकर,
मेघ करिया उमरि गेलै
देखि दाँतक चमक हुनकर
शीप मोती पसरि गेलै
फूल लोढे गेलि बारी
गाछ सबटा झहरि गेलै
गौर पूजै गेलि सीता
राम ऊपर नजरि गेलै
धनुष नै टूटैत देखै
प्राण सभ कें हहरि गेलै
हाथ मालाफूल लेने
भूप सभटा उतरि गेलै
ठार सीता राम निरखति
पुष्प माला ससरि गेलै
(मत्रक्रम 2122,2122, सभ पांति में )
रूबी झा
घोघ हुनकर उतरि गेलै
चान सूरज पसरि गेलै
आँखि काजर भरल हुनकर,
मेघ करिया उमरि गेलै
देखि दाँतक चमक हुनकर
शीप मोती पसरि गेलै
फूल लोढे गेलि बारी
गाछ सबटा झहरि गेलै
गौर पूजै गेलि सीता
राम ऊपर नजरि गेलै
धनुष नै टूटैत देखै
प्राण सभ कें हहरि गेलै
हाथ मालाफूल लेने
भूप सभटा उतरि गेलै
ठार सीता राम निरखति
पुष्प माला ससरि गेलै
(मत्रक्रम 2122,2122, सभ पांति में )
रूबी झा
हमर भारत महान अछि .
हमर भारत महान अछि देश भरिमे बस यएहे एक गान अछि हमर भारत महान अछि .
गणतंत्र बनल भारत जखन तखन जनता मुस्कऐल छल आब तंत्र बचल केवल भारत
तखन जनताकेँ सुधि ऐल छल गणकेँ बिसरि गेल नेता
बस कुर्सी टा हुनक जान अछि हमर भारत महान अछि .
भूखल जनता आ भूखल देश
दू टूक कलेव पर होइत द्वेष
मुदा धारण कऽ रखने सात्विक वेश
भऽ गेल फोकला भारत देश
मुदा झोरा पसारि कऽ नेता
बूझि रहल अपन मान अछि हमर भारत महान अछि .
पढ़ि लिखि कऽ आइ भविष्य
बेकार देखाइ दैत अछि ऐ बेकारक खरीद बिक्रीसँ
ईमान बिकाउ होइत अछि
गणतंत्र बनल भारत जखन तखन जनता मुस्कऐल छल आब तंत्र बचल केवल भारत
तखन जनताकेँ सुधि ऐल छल गणकेँ बिसरि गेल नेता
बस कुर्सी टा हुनक जान अछि हमर भारत महान अछि .
भूखल जनता आ भूखल देश
दू टूक कलेव पर होइत द्वेष
मुदा धारण कऽ रखने सात्विक वेश
भऽ गेल फोकला भारत देश
मुदा झोरा पसारि कऽ नेता
बूझि रहल अपन मान अछि हमर भारत महान अछि .
पढ़ि लिखि कऽ आइ भविष्य
बेकार देखाइ दैत अछि ऐ बेकारक खरीद बिक्रीसँ
ईमान बिकाउ होइत अछि
किछु सिक्काक वास्ते
हिनक गद्दारी केनाइ काज अछि
हमर भारत महान अछि .
कुर्सीक चक्करमे नेता
भूल - भुलैया घूमि रहल
कोन दल क बल नीक अछि
ध्यान लगा कऽ सूँघि रहल
दल - बदलू नेता सँ
आब जनता परेशान अछि
हमर भारत महान अछि .
दल बदलि कऽ तैयो नेता
जखन चुनाव हारि गेल
तँ ओइ दलक नेता सभ द्वारा
हुनका राज्यपाल बनाएल गेल
जनताक अछि ककरा फिक्र
बस कुर्सी हुनक जहान अछि
हमर भारत महान अछि .
आइ नै जानि राजनीतिमे
केहेन खिचड़ी पाकि रहल
भारतक जनता चुपचाप
निष्ठुर क़ानूनकेँ सहि रहल
एतऽ नेता - नेताक झोरामे
एक एक हवाला कांड अछि
हमर भारत महान अछि .
हिनक गद्दारी केनाइ काज अछि
हमर भारत महान अछि .
कुर्सीक चक्करमे नेता
भूल - भुलैया घूमि रहल
कोन दल क बल नीक अछि
ध्यान लगा कऽ सूँघि रहल
दल - बदलू नेता सँ
आब जनता परेशान अछि
हमर भारत महान अछि .
दल बदलि कऽ तैयो नेता
जखन चुनाव हारि गेल
तँ ओइ दलक नेता सभ द्वारा
हुनका राज्यपाल बनाएल गेल
जनताक अछि ककरा फिक्र
बस कुर्सी हुनक जहान अछि
हमर भारत महान अछि .
आइ नै जानि राजनीतिमे
केहेन खिचड़ी पाकि रहल
भारतक जनता चुपचाप
निष्ठुर क़ानूनकेँ सहि रहल
एतऽ नेता - नेताक झोरामे
एक एक हवाला कांड अछि
हमर भारत महान अछि .
गजल@प्रभात राय भट्ट
गजल
अनचिन्हार सं जहिया चिन्ह्जान बढल
तहिया सं हमरा नव पहिचान भेटल
विनु भाऊ बिकैत छलहूँ हम बाजार में
आई अनमोल रत्न मान सम्मान भेटल
काल्हि तक हमरा लेल छल अनचिन्हार
आई हमरा लेल ओ हमर जान बनल
अन्हरिया राईत में चलैत छलहूँ हम
विनु ज्योति कहाँ कतौ प्रकाशमान भेटल
प्रभात केर अतृप्त तृष्णा ओतए मेटल
जतए अनचिन्हार सन विद्द्वान भेटल
.............वर्ण:-१६.................
रचनाकार :-प्रभात राय भट्ट
अनचिन्हार सं जहिया चिन्ह्जान बढल
तहिया सं हमरा नव पहिचान भेटल
विनु भाऊ बिकैत छलहूँ हम बाजार में
आई अनमोल रत्न मान सम्मान भेटल
काल्हि तक हमरा लेल छल अनचिन्हार
आई हमरा लेल ओ हमर जान बनल
अन्हरिया राईत में चलैत छलहूँ हम
विनु ज्योति कहाँ कतौ प्रकाशमान भेटल
प्रभात केर अतृप्त तृष्णा ओतए मेटल
जतए अनचिन्हार सन विद्द्वान भेटल
.............वर्ण:-१६.................
रचनाकार :-प्रभात राय भट्ट
शनिवार, 24 मार्च 2012
गजल
धाख सबटा बिसरि गेलै
घोघ हुनकर उतरि गेलै
झूठ कोना कें नुकायत
जखन सोंझा बजरि गेलै
सय बचायब बचत कोना
लाज सबटा ससरि गेलै
ओ छलै फेसन सँ डूबल
काज सबटा पसरि गेलै
भेल नेता नींद में सब
देश सगरो रगरि गेलै
(बहरे-रमल,
SISS दु-दु बेर सभ पांति में )
***जगदानन्द झा 'मनु'
घोघ हुनकर उतरि गेलै
झूठ कोना कें नुकायत
जखन सोंझा बजरि गेलै
सय बचायब बचत कोना
लाज सबटा ससरि गेलै
ओ छलै फेसन सँ डूबल
काज सबटा पसरि गेलै
भेल नेता नींद में सब
देश सगरो रगरि गेलै
(बहरे-रमल,
SISS दु-दु बेर सभ पांति में )
***जगदानन्द झा 'मनु'
लेबल:
गजल,
जगदानन्द झा 'मनु'
पोथी समालोचना- "बहुरूपिया प्रदेश मे"
बहुरूपिया रचना मे
गजल मे हम रूचि राखैत छी। संगहि मैथिली मे थोड बहुत गजल सेहो लिखै छी आ गजलक पोथी सब पढबाक इच्छा रहै ए। मैथिली मे बहुत कम गजल संग्रह अछि आ ओहो सुलभ नै होइत रहै ए। एहन परिस्थिति मे हमरा श्री अरविन्द ठाकुरजीक सद्यः प्रकाशित मैथिली गजल संग्रह "बहुरूपिया प्रदेश मे" पढबाक अवसर भेंटल आ हम एहि पोथी केँ आद्योपान्त पढलहुँ।
सबसे पहिने हम श्री अरविन्द ठाकुरजी केँ मैथिली गजलक पोथी लिखबाक लेल बधाई दैत छियैन्हि। मैथिली गजलक उत्थान लेल प्रत्येक डेग हमरा महत्वपूर्ण लागै ए। पोथीक गेट अप बड्ड सुन्नर अछि। टाईप आ कागतक कोटि सेहो उत्तम अछि। पोथीक भूमिका गजलकार अपने लिखने छथि आ ओहि मे गजल आ एहि संग्रहक सम्बन्ध मे बहुत रास गप सब कहने छथि। जेना पृष्ठ संख्या सातक दोसर पारा मे गजलकार कहैत छथि जे "मैथिलीक मिजाजक सीमा (इ मैथिलीक नहि, हमर अपन सीमा भऽ सकैत अछि) केँ देखैत गजलक व्याकरण (रदीफ, काफिया, मिसरा, मतला, मकता आदि)क स्थापित मापदंडक कसबट्टी पर हमर सभ गजल खरा उतरत तकर दाबी तऽ नहिए टा अछि बल्कि हम तँ इ सकारय चाहै छी जे--------------------------------- हमर सीमाक कारणेँ प्रस्तुत गजल मे कएक जगह सुधि पाठक लोकनि केँ त्रुटि भेटि सकैत छनि।" एहि पाराक अन्त मे ओ कहै छथि जे बहरक दोख किछु शेर मे भेटि सकैत अछि। हम गजलकारक सराहना करैत छी जे ओ भूमिका मे अपने कएक ठाम बहरक आ आन दोख हएब स्वीकार कएने छथि। पोथी केँ आद्योपान्त पढला पर हमरा इ नै बुझाएल जे एहि संग्रहक गजल सब कोन-कोन बहर मे लिखल गेल अछि। अरबीक कोनो टा बहर मे कोनो गजल नहिए अछि, मैथिली मे आइ-काल्हि प्रयुक्त होइ बला सरल वार्णिक बहर मे सेहो कोनो गजल नै अछि। गजलकार केँ प्रत्येक गजल मे इ लिखबाक चाही छल जे कोन बहर मे गजल लिखल गेल अछि। जँ इ "आजाद-गजल"क संग्रह थीक, तँ हुनका एहि बातक उल्लेख करबाक चाही छल। भूमिकाक उपरोक्त पाराक शुरू मे गजलकार कहै छथि जे मैथिलीक मिजाज केँ देखैत एहि मे उर्दू-हिन्दी गजलक मिजाजक नकल करबाक प्रयास कएल जाइत तँ एकरा बुधियारी नहिए टा कहल जायत आओर सफलता सेहो नहि भेंटत। हम हुनकर गप सँ सहमत छी जे नकल करब उचित नहि। मुदा एकटा गप हम कहऽ चाहैत छी जे प्रत्येक विधाक एकटा नियम होइत छै आओर जाहि क्षेत्र मे ओहि विधाक उदय भेल रहैत छै ओहि क्षेत्र मे स्थापित भेल नियमक पालन केने बिना कोनो रचना मूल विधा मे कोना भऽ सकैत अछि। जेना मैथिली मे समदाउन आ सोहरक परम्परा छैक आ जँ पंजाबी मे वा गुजराती मे वा की कोनो आन भाषा मे समदाउन आ सोहर गाबऽ चाही तँ नियम कोना बदलि जेतैक। जँ नियम बदलतै तँ ओ दोसर चीज भऽ जेतैक। तहिना गजल अरब क्षेत्र मे जन्म लेलक आ इ स्वाभाविक छै जे एकर नियम (व्याकरण) ओहि क्षेत्रक स्थापित मानदण्डक आधार पर बनल। स्थापित मानदण्डक पालन करब नकल नहि कहल जा सकैत अछि। आ जे नकलक गप करी तँ 'गजल' कहब अरबी-हिन्दीक नकल थीक। एक दिस गजलकार 'गजल' कहबाक लोभ नै छोडि रहल छथि आ दोसर दिस गजलक व्याकरणक नियम पालन केँ नकल कहै छथि, इ उचित नै बुझाएल। गजल स्थापित मानदण्ड पर जँ नै कहल गेल तँ रचना केँ गजलक स्थान पर दोसर नाम देल जा सकैत अछि।
पृष्ठ संख्या दस पर दोसर पारा मे गजलकार कहै छथि जे ओ जीवन सँ सिदहा लैत छथि। इ स्वागत योग्य गप भेल। जीवनक सिदहा सँ तैयार व्यंजन सोअदगर हेबे करतै। मुदा भोजन बनबै काल चाउरक सिदहा पानि मे सोझे फुला कऽ परसि देला सँ भात नहि कहाइत अछि। चाउरक सिदहा केँ अदहन मे देल जाइ छै तखन भात तैयार होइ छै। तहिना जीवनक सिदहा जँ व्याकरण, नियम आ चिन्तन-मननक अदहन मे पकाओल जाइत अछि तँ सोअदगर रचना भेटैत अछि। विधा विशेषक मापदण्ड तोडबाक क्रांतिकारी घोषणा कएला टा सँ किछु विशेष फायदा वा उमेद तँ नहिए जगै ए। जँ कियो मापदण्ड तोडै छथि, तँ मापदण्ड पर चलै बला केँ नकलची आ बाजीगर कहब उचित नहि। गजल आ फकरा आ दोहा मे थोडेक अन्तर तँ छै जे रहबे करतै। अस्तु, इ गजलकारक अपन विचार छैन्हि आ आब प्रकाशित सेहो छैन्हि।
गजल संग्रहक सब गजल पढलौं। विषय वस्तु सब नीके लागल। गजलक व्याकरणक आधार पर कहि सकैत छी जे बहरक दोख तँ प्रत्येक गजल मे छैक आ जँ इ आजाद-गजलक संग्रह थीक तँ गजलकार इ गप कतौ नै कहने छथि। गजलकार केँ स्पष्ट करबाक चाही छल जे कोन कोन बहर मे गजल सब लिखल गेल अछि। हमरा बुझने गजलक कोनो शीर्षक नै होइत अछि, मुदा प्रत्येक गजल केँ एकटा शीर्षक देल गेल अछि। बहरक अतिरिक्त रदीफ आ काफियाक नियमक सेहो कएक ठाम पालन नै भेल अछि आ इ गप गजलकार भूमिका मे सेहो स्वीकार कएने छथि। जेना पृष्ठ बाईस मे मतलाक दुनू पाँति, दोसर शेर आ पाँचम शेर मे काफिया मे 'आयब' प्रयोग भेल अछि, तँ दोसर आ चारिम शेर मे 'अब' क प्रयोग अछि। पृष्ठ चौबीस मे मतलाक पहिल पाँति मे काफिया मे 'अ' आयल अछि आ दोसर पाँति आ अन्य शेर मे 'आत' आयल अछि। पृष्ठ पच्चीस मे काफिया की छै, से नै बुझाएल। पृष्ठ तिरपन मे प्रत्येक पाँति मे काफिया एकदम फराक फराक अछि। पृष्ठ अनठाबन मे मतला, दोसर शेर आ चारिम शेर मे काफिया मे 'अल' प्रयुक्त अछि आ आन सब शेर मे काफिया मे 'अ' प्रयुक्त अछि। पृष्ठ उनसठि मे सेहो रदीफ आ काफियाक स्पष्टता नै अछि। पृष्ठ छियासठि मे काफिया मे कतौ 'अल' आ कतौ 'आओल' प्रयुक्त अछि। पृष्ठ सडसठि आ तिहत्तरि मे सेहो काफियाक नियमक उल्लंघन भेल अछि। तहिना संयुक्ताक्षर बला काफियाक नियम सेहो एक दू ठाम हमरा हिसाबेँ ठीक नै अछि। एकर अतिरिक्त आओर कएक ठाम काफियाक नियमक पालन नै भेल अछि। हम उदाहरण स्वरूप किछु पृष्ठक उल्लेख कएलहुँ। हमर इ उद्देश्य नै अछि जे खाली दोख ताकल जाय, मुदा जँ गजल कहै छियै तँ गजलक नियमक पालन हेबाक चाही। सब गोटे केँ जानकारी लेल इ बता दी की बिना रदीफक गजल तँ भऽ सकैत अछि, मुदा बिना दुरूस्त काफिया भेने गजल नै भऽ सकैत अछि।
भूमिका सँ एकटा बात आर स्पष्ट होइ ए जे गजलकार मई २००८ सँ मैथिली मे गजल लिखब शुरू केलथि, ओना ओ हिन्दी मे पहिनहुँ गजल लिखैत छलाह। एकर मतलब इ भेल जे गजलकार "अनचिन्हार आखर" (मैथिली गजल केँ समर्पित ब्लाग) सँ बहुत बाद मे मैथिली गजल लिखब शुरू कएने छथि आ मैथिली गजलक वरीयता मे बहुत बाद मे आयल छथि। "अनचिन्हार आखर" ब्लाग देखला सँ पता चलै छै जे गजलकार एहि ब्लाग पर सेहो अपन कएक टा गजल २००९ सँ एखन धरि देने छथि। ओ "अनचिन्हार आखर" ब्लाग सँ चिन्हार छथि, तैँ इ उमेद अछि जे एहि ब्लाग पर प्रकाशित मैथिली गजलक विस्तृत व्याकरण केँ जरूर देखने हेताह। इ उमेद छल जे प्रस्तुत गजल संग्रह मैथिली गजलक नब पीढी लेल एकटा उदाहरण बनत। मुदा एहि संग्रह मे गजलक व्याकरणक जे उपेक्षा भेल अछि, जे गजलकार भूमिका मे स्वयं स्वीकार कएने छथि, निराशा उत्पन्न करैत अछि। मुदा इ संग्रह गजलकारक पहिलुक मैथिली गजल संग्रह अछि, तैँ गजलक व्याकरणक गलती भेनाई स्वभाविक अछि। आशा व्यक्त करै छी जे हुनकर आगामी गजल संग्रह मैथिली गजल मे अपन अलग स्थान राखत।
पृष्ठ संख्या दस पर दोसर पारा मे गजलकार कहै छथि जे ओ जीवन सँ सिदहा लैत छथि। इ स्वागत योग्य गप भेल। जीवनक सिदहा सँ तैयार व्यंजन सोअदगर हेबे करतै। मुदा भोजन बनबै काल चाउरक सिदहा पानि मे सोझे फुला कऽ परसि देला सँ भात नहि कहाइत अछि। चाउरक सिदहा केँ अदहन मे देल जाइ छै तखन भात तैयार होइ छै। तहिना जीवनक सिदहा जँ व्याकरण, नियम आ चिन्तन-मननक अदहन मे पकाओल जाइत अछि तँ सोअदगर रचना भेटैत अछि। विधा विशेषक मापदण्ड तोडबाक क्रांतिकारी घोषणा कएला टा सँ किछु विशेष फायदा वा उमेद तँ नहिए जगै ए। जँ कियो मापदण्ड तोडै छथि, तँ मापदण्ड पर चलै बला केँ नकलची आ बाजीगर कहब उचित नहि। गजल आ फकरा आ दोहा मे थोडेक अन्तर तँ छै जे रहबे करतै। अस्तु, इ गजलकारक अपन विचार छैन्हि आ आब प्रकाशित सेहो छैन्हि।
गजल संग्रहक सब गजल पढलौं। विषय वस्तु सब नीके लागल। गजलक व्याकरणक आधार पर कहि सकैत छी जे बहरक दोख तँ प्रत्येक गजल मे छैक आ जँ इ आजाद-गजलक संग्रह थीक तँ गजलकार इ गप कतौ नै कहने छथि। गजलकार केँ स्पष्ट करबाक चाही छल जे कोन कोन बहर मे गजल सब लिखल गेल अछि। हमरा बुझने गजलक कोनो शीर्षक नै होइत अछि, मुदा प्रत्येक गजल केँ एकटा शीर्षक देल गेल अछि। बहरक अतिरिक्त रदीफ आ काफियाक नियमक सेहो कएक ठाम पालन नै भेल अछि आ इ गप गजलकार भूमिका मे सेहो स्वीकार कएने छथि। जेना पृष्ठ बाईस मे मतलाक दुनू पाँति, दोसर शेर आ पाँचम शेर मे काफिया मे 'आयब' प्रयोग भेल अछि, तँ दोसर आ चारिम शेर मे 'अब' क प्रयोग अछि। पृष्ठ चौबीस मे मतलाक पहिल पाँति मे काफिया मे 'अ' आयल अछि आ दोसर पाँति आ अन्य शेर मे 'आत' आयल अछि। पृष्ठ पच्चीस मे काफिया की छै, से नै बुझाएल। पृष्ठ तिरपन मे प्रत्येक पाँति मे काफिया एकदम फराक फराक अछि। पृष्ठ अनठाबन मे मतला, दोसर शेर आ चारिम शेर मे काफिया मे 'अल' प्रयुक्त अछि आ आन सब शेर मे काफिया मे 'अ' प्रयुक्त अछि। पृष्ठ उनसठि मे सेहो रदीफ आ काफियाक स्पष्टता नै अछि। पृष्ठ छियासठि मे काफिया मे कतौ 'अल' आ कतौ 'आओल' प्रयुक्त अछि। पृष्ठ सडसठि आ तिहत्तरि मे सेहो काफियाक नियमक उल्लंघन भेल अछि। तहिना संयुक्ताक्षर बला काफियाक नियम सेहो एक दू ठाम हमरा हिसाबेँ ठीक नै अछि। एकर अतिरिक्त आओर कएक ठाम काफियाक नियमक पालन नै भेल अछि। हम उदाहरण स्वरूप किछु पृष्ठक उल्लेख कएलहुँ। हमर इ उद्देश्य नै अछि जे खाली दोख ताकल जाय, मुदा जँ गजल कहै छियै तँ गजलक नियमक पालन हेबाक चाही। सब गोटे केँ जानकारी लेल इ बता दी की बिना रदीफक गजल तँ भऽ सकैत अछि, मुदा बिना दुरूस्त काफिया भेने गजल नै भऽ सकैत अछि।
भूमिका सँ एकटा बात आर स्पष्ट होइ ए जे गजलकार मई २००८ सँ मैथिली मे गजल लिखब शुरू केलथि, ओना ओ हिन्दी मे पहिनहुँ गजल लिखैत छलाह। एकर मतलब इ भेल जे गजलकार "अनचिन्हार आखर" (मैथिली गजल केँ समर्पित ब्लाग) सँ बहुत बाद मे मैथिली गजल लिखब शुरू कएने छथि आ मैथिली गजलक वरीयता मे बहुत बाद मे आयल छथि। "अनचिन्हार आखर" ब्लाग देखला सँ पता चलै छै जे गजलकार एहि ब्लाग पर सेहो अपन कएक टा गजल २००९ सँ एखन धरि देने छथि। ओ "अनचिन्हार आखर" ब्लाग सँ चिन्हार छथि, तैँ इ उमेद अछि जे एहि ब्लाग पर प्रकाशित मैथिली गजलक विस्तृत व्याकरण केँ जरूर देखने हेताह। इ उमेद छल जे प्रस्तुत गजल संग्रह मैथिली गजलक नब पीढी लेल एकटा उदाहरण बनत। मुदा एहि संग्रह मे गजलक व्याकरणक जे उपेक्षा भेल अछि, जे गजलकार भूमिका मे स्वयं स्वीकार कएने छथि, निराशा उत्पन्न करैत अछि। मुदा इ संग्रह गजलकारक पहिलुक मैथिली गजल संग्रह अछि, तैँ गजलक व्याकरणक गलती भेनाई स्वभाविक अछि। आशा व्यक्त करै छी जे हुनकर आगामी गजल संग्रह मैथिली गजल मे अपन अलग स्थान राखत।
गजल
हाथीक दाँत देखाबैकेँ आर नुकाबैकेँ छै आर
नेताकेँ कहैक गप्प छै आर बनाबैकेँ छै आर
केलक भोज नै दालि बड्ड सुडके इ बूझल
भोज करैक बात आरो छैक देखाबैकेँ छै आर
दोसरकेँ फटलमे टाँग सब कीयो अडाबै छै
फाटल अपन सार्बजनिक कराबैकेँ छै आर
सासुरकेँ मजा बहुते होइ छै सभकेँ बुझल
कनियाँ सन्ग सासुरमे मजा सुनाबैकेँ छै आर
भाई धनक गौरब तँ गौरबे आन्हर रहै छै
मोट रुपैया जखन बाप जे पठाबैकेँ छै आर
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१८)
केलक भोज नै दालि बड्ड सुडके इ बूझल
भोज करैक बात आरो छैक देखाबैकेँ छै आर
दोसरकेँ फटलमे टाँग सब कीयो अडाबै छै
फाटल अपन सार्बजनिक कराबैकेँ छै आर
सासुरकेँ मजा बहुते होइ छै सभकेँ बुझल
कनियाँ सन्ग सासुरमे मजा सुनाबैकेँ छै आर
भाई धनक गौरब तँ गौरबे आन्हर रहै छै
मोट रुपैया जखन बाप जे पठाबैकेँ छै आर
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१८)
लेबल:
गजल,
जगदानन्द झा 'मनु'
शुक्रवार, 23 मार्च 2012
गजल
स्वपन-सुन्नरी हमर सपनाकें ,सपना सँ बाहर आएब कोना ,
हे मृगनयनी स्वर्ग-परी, अहाँ हमर आँखि कें सोझा होएब कोना ,
अहाँ नित सपना में आबि सताबि,केखनो आँखि कें सोझा नै आबै छी ,
सदिखन अहींक सपने में रहि, सपना सँ बाहर जाएब कोना ,
अच्चकें में आबि अहाँ जगाबै छी, आँखी खुजै त किछु नहि पाबए छी ,
हे कमलरुपी जे अहाँ छी, सपना सँ केखन बाहर आएब कोना ,
हम एक्केटक ध्यान लागोने छी ,मोन अछि व्याकुल छाह हसोथै छी ,
अदभुत रचना मोनक हमर ,सपना सँ बाहर लाएब कोना
- - - - - - - - - - - - वर्ण -२५ - - - - - - - - - - - - -
रूबी झा
हे मृगनयनी स्वर्ग-परी, अहाँ हमर आँखि कें सोझा होएब कोना ,
अहाँ नित सपना में आबि सताबि,केखनो आँखि कें सोझा नै आबै छी ,
सदिखन अहींक सपने में रहि, सपना सँ बाहर जाएब कोना ,
अच्चकें में आबि अहाँ जगाबै छी, आँखी खुजै त किछु नहि पाबए छी ,
हे कमलरुपी जे अहाँ छी, सपना सँ केखन बाहर आएब कोना ,
हम एक्केटक ध्यान लागोने छी ,मोन अछि व्याकुल छाह हसोथै छी ,
अदभुत रचना मोनक हमर ,सपना सँ बाहर लाएब कोना
- - - - - - - - - - - - वर्ण -२५ - - - - - - - - - - - - -
रूबी झा
गीत
बड्ड आस धेने हम एलौं शरण, अहींक पुत्र थीकौं माँ।
रहऽ दियौ हमरा अपन चरण, अहींक पुत्र थीकौं माँ।
लाल रंग अँचरी, लाले रंग टिकुली, माँ केर आसन लाले-लाल,
सिंहक सवारी शोभै, हाथ मे त्रिशूल, अहाँक चमकैए भाल।
करै छी वन्दना धरती सँ गगन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।
आंगन नीपेलौं, अहाँक पीढी धोएलौं, छी फूल लेने ठाढ,
दियौ दरसन माँ, दुख करू संहार, भरू सुख सँ संसार।
अहीं कहू हम करी कोन जतन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।
नै चाही अन धन, नै चाही जोबन, खाली शरण माँगै छी,
सुनू हमरो पुकार, भरू ज्ञानक भण्डार, एतबा वचन माँगै छी।
कहिया देबै अहाँ हमरा दर्शन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।
जपै छी नाम अहींक, हम सब राति दिन, तकियौ एक बेर,
करू हमर उद्धार, लगाबू बेडा पार, नै ए कोनो कछेर।
अछि नोर भरल "ओम"क नयन, अहींक पुत्र थीकौं माँ।
पहिल टिकुला
मज्जरक दिन सँ पसरल सुगंध ,
हर्षित मोन सुंघि मातल गंध ,
फूसिये कहै छी कोयलक गीत सुन' जाइ छलौ ,
सच कहौँ बढ़ैत टिकुलाक दर्शन कर' जाइ छलौँ ,
डाँढ़ि-पात लुबधल हरियर टिकुला ,
पैघ-छोट ,वाह! केहन रूप दैब रचला ,
पहिल टिकुला सँ चटनी थारी सजल ,
साल भरि के बाद मुँहक स्वाद बदलल ,
एखने सँ मीठ राजा लागि रहल ,
बम्बई मालदह छकि क' खेबै आश लागल ,
धन्य भेल जिनगी देख पहिल टिकुला ,
"अमित" रसालक ध्यान मे बनल बगुला . . . । ।
अमित मिश्र
हर्षित मोन सुंघि मातल गंध ,
फूसिये कहै छी कोयलक गीत सुन' जाइ छलौ ,
सच कहौँ बढ़ैत टिकुलाक दर्शन कर' जाइ छलौँ ,
डाँढ़ि-पात लुबधल हरियर टिकुला ,
पैघ-छोट ,वाह! केहन रूप दैब रचला ,
पहिल टिकुला सँ चटनी थारी सजल ,
साल भरि के बाद मुँहक स्वाद बदलल ,
एखने सँ मीठ राजा लागि रहल ,
बम्बई मालदह छकि क' खेबै आश लागल ,
धन्य भेल जिनगी देख पहिल टिकुला ,
"अमित" रसालक ध्यान मे बनल बगुला . . . । ।
अमित मिश्र
गजल
टूटिए जेतै संबंध जँ दस लेल एक सँ , इहो स्वीकार अछि ,
भीड़ मे जीबै छी तेँ भीड़ के बचेनाइ हमर अछिकार अछि , हम बनियाँ छी सए कमा लेब , दस छुटि गेल कोनो दुख नै ,
सबल त' बढ़बे करतै ओकरा संग दिअ जे लचार अछि , माछक लोभ मे सड़ल माछ ल दुषित नै करब समाज के .
एक दाम मे बिकै बला ककरो जिनगी नै मीना बजार अछि , सब के सब सँ किछु-ने- किछु चाहत रहै छै छोट बाट पर ,
अहाँ एक बेर आबू हम दस बेर , इ हमर व्यबहार अछि , लड़ाइ क' देह जुनि तोड़ै जाउ , प्रेम क' दिल धरि पहुँचु यौ ,
"अमित" गिनती के फेरा मे नै पड़ू , सगरो अपने संसार अछि . . . । । वर्ण-23 अमित मिश्र
भीड़ मे जीबै छी तेँ भीड़ के बचेनाइ हमर अछिकार अछि , हम बनियाँ छी सए कमा लेब , दस छुटि गेल कोनो दुख नै ,
सबल त' बढ़बे करतै ओकरा संग दिअ जे लचार अछि , माछक लोभ मे सड़ल माछ ल दुषित नै करब समाज के .
एक दाम मे बिकै बला ककरो जिनगी नै मीना बजार अछि , सब के सब सँ किछु-ने- किछु चाहत रहै छै छोट बाट पर ,
अहाँ एक बेर आबू हम दस बेर , इ हमर व्यबहार अछि , लड़ाइ क' देह जुनि तोड़ै जाउ , प्रेम क' दिल धरि पहुँचु यौ ,
"अमित" गिनती के फेरा मे नै पड़ू , सगरो अपने संसार अछि . . . । । वर्ण-23 अमित मिश्र
गजल
धक सं लागल चोट, करेजा हमर तोड़ि देलऊं
एहन भेलऊं अहां कठोर कि हमरा छोड़ि देलऊं ।
दिन हो चाहे राइत अहांके हम ईयाद छलऊं
एहन अहांके कि भ गेल कि हमरा छोड़ि देलऊं ।
सदिखन छलहुं हमर पास संग आब छोड़ि देलऊं
हम देखितॆ रहलऊं बाट अहां मुख मोड़ि लेललऊं ।
टूटल हमर पूर्ण विश्वास, दूख संग जोड़ि गेलऊं
हमरा सं कि गलती भेल कि हमरा छोड़ि गेलऊं ।
- भास्कर झा 22/03/2012
लेबल:
गजल,
भास्करानंद झा भास्कर
गुरुवार, 22 मार्च 2012
बेटी पराया धन
कए साल स सुनइत आइब रहल छी,
बेटि त पराया धन होइत अछि ,
जकरा हम सहेजइ छी, संभारइ छी ,
अपन जान स बेसी मानैत छी ,
और फेर चैल जाइत अछि वो एक दिन,
अपन तथाकथित स्वामीक लग|
मुदा एक बात के उत्तर देता कियो हमरा ,
भला किएक कियो अपन धन के ,
वापस लय में सेहो धन माँगइत अछि ,
या फेर अपन धन के अनैहते ,
जर्बैत अछि या घर स निकाइल बाहर करइत अछि |
यदि नय त किएक दहेज के आइग में ,
जरइत अछि हजारो बेटि,
या दर दर ठोकर खाय के लेल मजबूर अछि ,
अपन बाबु के वो राजदुलारी ,
दोष नियत के अछि या अय समाज़ के ,
की यशोदा सेहो आन बुझलक ,
और देवकी सेहो नय अपनेलक |
निशांत झा
बेटि त पराया धन होइत अछि ,
जकरा हम सहेजइ छी, संभारइ छी ,
अपन जान स बेसी मानैत छी ,
और फेर चैल जाइत अछि वो एक दिन,
अपन तथाकथित स्वामीक लग|
मुदा एक बात के उत्तर देता कियो हमरा ,
भला किएक कियो अपन धन के ,
वापस लय में सेहो धन माँगइत अछि ,
या फेर अपन धन के अनैहते ,
जर्बैत अछि या घर स निकाइल बाहर करइत अछि |
यदि नय त किएक दहेज के आइग में ,
जरइत अछि हजारो बेटि,
या दर दर ठोकर खाय के लेल मजबूर अछि ,
अपन बाबु के वो राजदुलारी ,
दोष नियत के अछि या अय समाज़ के ,
की यशोदा सेहो आन बुझलक ,
और देवकी सेहो नय अपनेलक |
निशांत झा
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