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गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

माथ झुकेने बाप ठाड़्ह छथि बेवश आ लाचार...

माथ झुकेने बाप ठाड़्ह छथि बेवश आ लाचार
माँगि रहल अछि बेटीके ससूर होण्डा सिटी कार
नगद सेहो देब संगहि ओकर देब अहाँ जेवरात
लऽ जायब नहि तऽ वापस अपनेक घरसँ बरियात!

पिता कहै छथि सुनू समधीजी, बुझू हमर हालात
सुन्दर अछि बेटी हमर, सुन्दर ओकर खयालात
घरके स्वर्ग बना के राखत खूब करत ओ सेवा
घरमें लक्ष्मी सदिखन बसती धन के भेटत मेवा!

गृहस्थीके समान में देब छै जै सब चीजक दरकार
नहि दय सकबै अपनेकेँ एखन होण्डा सिटी कार!

ससूर कहै छथि बियाहे तखन करब अछि बेकार
हमरा चाही हर हालतमें बियाह में एकटा कार!

तखनहि अन्दर सँ बेटी अपन बाप सँ कहय लगली
नहि भरियौ पूज्य पिताजी एहि भिखारी के झोली!
कतेक देबैक कहिया देबैक इ छथि भिखारी पक्के
दैत-दैत हाइरियो जायब एक दिन अहुँ थाइक के!
नहि करबैक बियाह एतय बरु करबै पूरा पढाई
कतेको लड़की जे पैढ के किस्मत अपन बनौली!
ठाड़्ह होयब पैरो पर अप्पन तखनहि करबै बियाह!
बिना बनल आत्मनिर्भर बियाह करब माने बर्बाद!

"दहेज़ मुक्त के लेल एक टा छोट कोसीसी
दहेज़ मुक्त मिथिला परिवार"
चन्दन झा "राधे"

**आधुनिक पूजा**

आधुनिकता कए दोड़ मे पुजा आधुनिक भ' गेलै ,
पूजन सँ बेसी आयोजन पर ध्यान देल गेलै ,
मंहगाई कए मारल जनता सँ बेसी चंदा लेल गेलै ,
चौक-चौराहा पर पैघ पंडाल सजाओल गेलै ,
जेकर बेसी खर्च भेलै तेकर नाउ अखबार मे छापल गेलै ,
चिकनी चमेली ,शीला के जवानी ,जलाबी बाई कए नचाओल गेलै ,
कट्टो गिलहरी ,उह ला ला .रजिया संग कतेको मुन्नी बदनाम भेलै ,
कत्तौ-कत्तौ शेरावाली कए जयकारा सुनि पूजा कए यादि एलै ,
भक्तक कम रसिया कए भीड़ बेसी जुटलै ,
ओना पहिले जेकाँ मस्त भ' अबिर उड़ाओल गेलै ,
ऐ तरह सँ आधुनिक पूजा सफल भेलै . . . । ।
जौँ किनको खराब लागए त हम क्षमा चाहब ।
अमित मिश्र

गीत@ प्रभात राय भट्ट

गीत@ प्रभात राय भट्ट
 
सुन सुन रे  सुन पवन पुरबैया 
की लेने चल हमरो अप्पन गाम  
हमर जन्मभूमि वहि ठाम
जतय छै सुन्दर मिथिलाधाम //२
 
देश विदेश परदेश घुमलौं
मोन केर भेटल नहीं आराम
साग रोटी खैब रहब अप्पने गाम
जतय छै सुन्दर मिथिलाधाम //२
 
घर घर में छन्हि बहिन सीता
राजर्षि जनक सन पिता
सभ केर पाहून छथि राम
जतय छै सुन्दर मिथिलाधाम //२
 
काशी घुमलौं मथुरा घुमलौं
घुमलौं मका मदीना
सभ सँ पैघ विद्यापति केर गाम
जतय छै सुन्दर मिथिलाधाम //२
 
हिमगिरी कोख सँ बहैय कमला कोशी बल्हान
तिरभुक्ति तिरहुत छै जग में महान
दूधमति सँ दूध बहैय छै वैदेहीक गाम
जतय छै  सुन्दर  मिथिलाधाम //२
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

चाह पीबू। (हास्य कविता)



     चाह पीबू।
        (हास्य कविता)

हरबड़ी मे जुनि ठोर पकाउ यौ नेता जी
दिल्लीक कुर्सी भेटल सूखचेन स अहाँ बैसू
आउ हम बेना डोला दैत छी
फूकी फूकी अहाँ गरम-गरम चाह पीबू।।

भूखे मरि रहल अछि जनता मरअ दियौअ ओकरा
नहि कोनो चिन्ता अहाँ के कोन अछि बेगरता
संसद के कुर्सी पर बैसल अराम अहाँ करू
करिक्का रूपैया स बैंक बैलेंस अहाँ भरू।।

मूर्ती बनबै स रथ यात्रा करै लेल पाई अछि
मुदा रोटी रोजगार हेतू एक्को टा पाई नहि अछि
फुसयाँहीक चुनावी घोषणा पर घोषणा टा करू
कुर्सी भेटल त घोटाला पर महाघोटाला टा करू।।

बाजि गेल चुनावी पीपही
राजनैतिक गठजोड़ जल्दी अहाँ करू
जुनि पछुआउ सियासी कुर्सी अहाँ ताकू
फेर पाँच साल जनता के बेकूफ बनाएल करू।।

दुनियाक सभ स नमहर लोकतंत्र
बनि गेल वोट बैंकक भेड़तंत्र
सम्प्रदायिकता के आगि मे जनता के झरकाउ
कुर्सी हथियाबै लेल रचू कोनो नबका षड्यंत्र।।

पहिने कुर्सी फेर मंत्रालय कोना भेटत
सभटा छल प्रपंच अखने अहाँ करू
हे यौ लोकप्रिय भलमानुष जनप्रतिनिधी
संसदो मे अहाँ खूम मुक्कम मुक्की करू।।

कुर्सीक खातिर देशक संसाधन बेचलहुँ
बाँचल खूचल सेहो एक दिन अहाँ बेचू
जनता भूखे मरि गेल ओ बिलैटि गेल
मुदा साले साल राजनैतिक रोटी अहाँ सेकू।।

मँहगाइ भूखमरी कोनो समाधान ने कराउ
कृषि मंत्रालय मे राखल अन्न अहाँ सड़ाउ
संसद के कैंटीन में सरकारी सब्सिडी लगाउ
चिकन कोरमा शाही पनीर भरिपेट अहाँ खाउ।।

घोटाला पर महाघोटाल सभ केलहुँ
तइयो ने पेट अहाँ के भरल
मिठ बोली बाजि जनता के ठकलहुँ
एक्को दिन भूखले पेट होएत अहाँ के रहल

कतेको लोक भूखले मरि गेल बेकार भेल अछि किएक
संसद भवन स एक दिन बाहर निकलि अहाँ त देखू
की भा परैत छैक एक्के दिन मे बुझिए जेबैए
बिना किछ खेन्ने एक दिन भूखले रहि के अहाँ देखू।।

मुदा कोनो चिन्ता नहि आब कुर्सी भेटिए गेल
संसद भवन मे सूखचेन स अहाँ बैसू
कारीगर बेना डोला दैत अछि
फूकी फूकी  अहाँ गरम-गरम चाह पीबू।।






लेखक:- किशन कारीगर

गजल@प्रभात राय भट्ट

कुमुदिनी  पर  भँभर    मंडराइए  किए
यौ पिया कहू ने  करेज   घबराइए   किए

भँभर कुमुदिनीसँ  मिलन करैत छैक
यै  सजनी अहाँक करेजा  हहाइए  किए

मोनक बगियामे  नाचैए  मोर मयूर यौ
प्रीतक  उमंगसँ  मोन   छतराइए  किए

अहाँक  रोम रोममे अछि प्रेमक तरंग
अहाँक संग हमरा एते  सोहाइए किए

प्रीतक बगियामे कुहकैए  छैक कोईली
मधुर स्वर सुनि  मोन  लहराइए  किए

मोन उपवनमे   भरल प्रीतक श्रृंगार
एलै मधुर घरी  मोन  घबराइए  किए

..........वर्ण:-१६..........

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

मंगलवार, 31 जनवरी 2012

गजल- भास्करानन्द झा भास्कर

प्रेम-गाछ पर बैसल वो चिड़ै , कुन दिशा में उड़ि गेलई
मोनक बात मोने में रहिके अंकुरित भकअ गड़ि गेलई ।

दूर उड़ान हरि लेलक प्राण, हर्खक बरखी लागै भय गेल
बनिके ठूठ ठाड़े मोन रहिगेल, हरियर फ़ुनगी झड़ि गेलई ।

मन उपवन छल स्वच्छ सुवासित चाहक छाया बड गंभीर
हॄदयक वेदना सं तप्त त्रस्त, सुखायलओ जड़ि जड़ि गेलई ।

कानै आंखि दुनु झड़ि झड़ि, ककरा सं कहब ई प्रेमक पीड़
प्रेयसी प्रेम पीड़ित प्रियतम के अनंत पीड़ा में छोड़ि गेलई ।
भास्कर झा 31/01/2012

गजल- भास्करानन्द झा भास्कर

बड मनभावन नयनक शोभा, काया श्याम वर्ण उत्किर्ण
सहसमुखी सौन्दर्यक अक्ष छनि, वक्ष समक्ष प्रेम उतीर्ण ।

पैघ केशक कलि फ़ूटित बनिकए खिलि प्रेमक किसलय
नख सिख दहक महक विराजत , हॄदय होयत विदिर्ण ।

मुसिक मुसिक मन उपवन विचरय सुन्दर सब नर- नारी
प्रेमालय केर छात्र गिरि कए भय जायत बहुधा अनुतीर्ण ।

प्रेम पथिक पथ जीवन बिसराए , पटकैत सदिखन माथ
बनि कवि आब सर्वत्र बौराए, दूषित देह लागै जीर्ण शीर्ण ।

- भास्कर झा 31/01/2012

गजल


जखन सँ खसल आँचर देखलहुँ हम
तखन सँ बुझू सबटा  बिसरलहुँ हम

होस रहल नै कतय छी कनिको अपन
आब तs अहीं में पूर्णतय रमलहुँ हम

दोख आँचरक नै ई  खुसनसीबि हमर
मोन में अहाँ कए अपन बनेलहुँ हम

अहाँ मानु नै मानु आँचर हमहि राखब
खसै छै कतेक खसै दियौ ठानलहुँ हम

सुकोमल काया बदन सुन्नर चन्दन सँ
आँचरक बहाने अहाँ केँ  जानलहुँ हम 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१६) 
जगदानन्द झा 'मनु'  : गजल संख्या-१४ 

गजल@ प्रभात राय भट्ट

            गजल   
आब कहिया तक  रहतै, हमर मोन उदास यौ पिया
होलीमें गाम एबैय,तोड़ब नै हमर विस्वास यौ पिया 

अहांक  ईआद  में  तर्सल जिया,बरसल नैना सं नीर
बैषाखी बीत बरषलै सावन,बुझलै नै प्यास यौ पिया

सुकसुकराती  दियाबाती, बितगेल  दष्मी  दशहरा  यौ 
छैठो में गाम नै एलौं, तोड़ी देलौं मोनक हुलास यौ पिया  

मोन भ S गेल आजित, कहिया भेटत अहाँक दुलार  यौ
एबेर फागुमें अहाँ आएब,मोन में अछि आस यौ पिया 

जौं गाम नै आएब, हमर मुइलो  मुह  देख नै पाएब
फेर ककरा संग करब, प्रीतक भोग विलास यो पिया 
....................वर्ण:-२१..............................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

विदेह नाट्य उत्सव २०१२ (भाग-२)