गजल-1.60
अम्बरमे जते तरेगण पसरल छै
ओते जनम धरि दुनू प्रेमी रहबै
ने अधलाह करब ककरो जग भरिमे
हमरो संग सब किओ नीके करतै
हँसि हँसि झाँपने कते दर्दक सागर
असगरमे नयनसँ शोणित बनि बहतै
मंगल अमर उधम भगतक जोड़े की
नव इतिहास रचि युवे अमरो बनतै
भाषा प्रीत केर जानै छी केवल
दोसर भाव "अमित" नै विचलित करतै
2221-2122-222
अमित मिश्र
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