विहनि कथा
चारि बजे भोरे करीया उठि गेल । स्नान-ध्यान क' कोयला सिलौट पर पिसलक , लोढ़ी पर अक्षत-फूल चढ़ा , कोयला कए गर्दा कए चानन बना माँथ , पिठ , बाँहि ,छाती , गर्दन पर लगेलक । करिका सर्ट-पेण्ट पहीर गामक मंदिर दिश चलि देलक । कारी चाम पर कारी तिलक आ कारी वस्त्र ,डेराउन रूप लागैए , आधा पाकल केश ओहि रूप कए और भयानक बनेने छलैए । छ' बजे भोरे मंदिर पहुँचल तेँ कोनो भीड़-भाड़ नहि छलै । करीया तीन -चारि बेर चारू कात हियासलक मुदा केउ नजर नहि एलै ।थाकि-हारि क' पाया मे पिठ सटा बैस गेल । सुरज चढ़ति गेलाह , 12 बाजि गेल । तखने मंदिरक कोना मे करीया कए अपन दोस्त देखाइ देलकै , ओकरा लग जा क' बाजलै , "बेचना . जेना-जेना तूँ कहने छलैँ तेना-तेना पूजा क' हम भोरे सँ एत' छी , आब रहल नहि जाइ यै , जल्दी ओकरा देखा जेकरा संग जीवन काटब ।" बेचना आ और संगी सब ठहक्का मारैत बाजल ,"बड़का मूर्ख छेँ तूँ रौ , तोरा सन 40 वर्षक बूढ़बा सँ के बियाह करतौ? हम सब तोरा उल्लू बनेलियौ ,जानै नहि छहीँ आइ फूल डे छै ।"सब ठहक्का मारि करीया कए खिसियाब' लागल आ करीया सोच' लागल जे इ नाम त' कहियो नहि सुनलौँ आखीर कोन लड़की वा कोन जानवर कए नाम छै फूल डे?अमित मिश्र
रविवार, 1 अप्रैल 2012
फूल डे
हजल
आगू नाथ नै पिछु पगहा ,
देखियौ कोना कूदै गदहा ,होर लागल फल-फूल मे ,
के सब सँ बड़का बतहा ,मुर्ख दिवस मुर्खक नामेँ ,
केरा बनि गेलै यै गदहा ,बत्तीस मार्च के सम्मेलन ,
मुर्खीस्तान मे हेतै सबहा ,पाइ कमाइ छै चारि लाख ,
मुदा सब्जी लेलनि दबहा ,चुन्नू सुतल अपन घर ,
मुदा उठल जा क' भूतहा ,मोनूआँ चढ़ल साइकिल .
उठेने माँथ पर बोझहा ,बीस टका मे दर्जन केरा ,
मुन्नू लै छै बीस मे अदहा ,माँथ उठेने छलै छै गोनू ,
खसलै खद्दा , भेलै पटहा ,चुन्नू , मुन्नू , गोनू वा "अमित "
कहू के छथि पैघ बतहा . . . । ।अमित मिश्र
देखियौ कोना कूदै गदहा ,होर लागल फल-फूल मे ,
के सब सँ बड़का बतहा ,मुर्ख दिवस मुर्खक नामेँ ,
केरा बनि गेलै यै गदहा ,बत्तीस मार्च के सम्मेलन ,
मुर्खीस्तान मे हेतै सबहा ,पाइ कमाइ छै चारि लाख ,
मुदा सब्जी लेलनि दबहा ,चुन्नू सुतल अपन घर ,
मुदा उठल जा क' भूतहा ,मोनूआँ चढ़ल साइकिल .
उठेने माँथ पर बोझहा ,बीस टका मे दर्जन केरा ,
मुन्नू लै छै बीस मे अदहा ,माँथ उठेने छलै छै गोनू ,
खसलै खद्दा , भेलै पटहा ,चुन्नू , मुन्नू , गोनू वा "अमित "
कहू के छथि पैघ बतहा . . . । ।अमित मिश्र
तखने जीयब शान सँ
किछु ऊपर सँ रोज कमाबी तखने जीयब शान सँ
काका, काकी, पिसा, पिसी रिश्ता भेल पुरान यौ
कहुना हुनका दूर भगाबी तखने जीयब शान सँ
सठिया गेला बूढ़ लोक सब हुनका बातक मोल की
हुनको नवका पाठ पढ़ाबी तखने जीयब शान सँ
सासुर अप्पन कनिया, बच्चा एतबे टा पर ध्यान दियऽ
बाकी सब सँ पिण्ड छोड़ाबी तखने जीयब शान सँ
मातु-पिता के चश्मा टूटल कपड़ा छय सेहो फाटल
कनिया लय नित सोन गढ़ाबी तखने जीयब शान सँ
पिछड़ल लोक बसल मिथिला मे धिया-पुता सँ कहियो
अंगरेजी मे रीति सिखाबी तखने जीयब शान सँ
सुमन दहेजक निन्दा करियो बस बेटी वियाह मे
बेटा बेर मे खूब गनाबी तखने जीयब शान सँ
शनिवार, 31 मार्च 2012
मैथिलि--काव्य: Natak:"JAGU" --Doar Drishya
मैथिलि--काव्य: Natak:"JAGU" --Doar Drishya: नाटक: "जागु" दृश्य:दोसर , (सोइरिक दृश्य ) (नारायणक प्रवेश ) नारायण:: (लक्ष्मी सँ )...नीके छी ने ? (बच्चा कें कोरा मे उठा लैत छथि )....लक्...
शुक्रवार, 30 मार्च 2012
मैथिलि--काव्य: Natak:"JAGU"---Ank-1, Drishya-1
मैथिलि--काव्य: Natak:"JAGU"---Ank-1, Drishya-1: अंक प्रथम: दृश्य:प्रथम समय: राइत (दलानक दृश्य , अषाड़क अन्हरिया राइत, लालटेन जरैत, दलान पर चिंतित मुद्रा मे नारायण टहलैत| नेपथ्य ...
मैथिलि--काव्य: Natak:"JAGU"----Patra Parichay
मैथिलि--काव्य: Natak:"JAGU"----Patra Parichay: नाटक: "जागु" पात्र परिचय : १. नारायण : एक गृहस्थ , उम्र ४५ वर्ष २. लक्ष्मी:नारायण के पत्नी , उम्र ४० वर्ष ३.लाल काकी:नारायण के माए, उम्र ...
भूत - वर्तमान ( कविता )
लाल कक्का पहिने कहय छलथि -
हमर बच्चा अंग्रेजी म बडड चरफर अछि
मैथिली नहिं आबेति छन्हि त की हेतेय
आई काल्हि त अंग्रेजीए सभ किछु छई
कतौ कुनु ठाम कमा खठा के जी लेतेय
आशिक राज -
ई सोचि ओ अपना बच्चा के
मिथिला के संस्कार नहिं देलेनि
ई देखि दाँतय आँगुर
कटलौंपरिणाम देखु की भेलेनि
बच्चा अंग्रेजी पढ़ला के बाद कहय छथि -
गाम म जायब त माटि लागि जायत
शहर म रहिके कलम खोसबाक
चाही माँ बाप क अनला स इज्जत पर पड़त
इज्जत क लेल कुकुर पोषबाक चाही
आब कक्का कहि रहल छथि -
मैथिली मिथिला के मर्म नहिं
जनलौंसजा ओकरे ई भेटि रहल अछि
साँस चलेति अछि तैं जीबय छी
नहिं पुछु जिनगी कोना कटि रहल अछि
समाप्त
आशिक’राज ’
हमर बच्चा अंग्रेजी म बडड चरफर अछि
मैथिली नहिं आबेति छन्हि त की हेतेय
आई काल्हि त अंग्रेजीए सभ किछु छई
कतौ कुनु ठाम कमा खठा के जी लेतेय
आशिक राज -
ई सोचि ओ अपना बच्चा के
मिथिला के संस्कार नहिं देलेनि
ई देखि दाँतय आँगुर
कटलौंपरिणाम देखु की भेलेनि
बच्चा अंग्रेजी पढ़ला के बाद कहय छथि -
गाम म जायब त माटि लागि जायत
शहर म रहिके कलम खोसबाक
चाही माँ बाप क अनला स इज्जत पर पड़त
इज्जत क लेल कुकुर पोषबाक चाही
आब कक्का कहि रहल छथि -
मैथिली मिथिला के मर्म नहिं
जनलौंसजा ओकरे ई भेटि रहल अछि
साँस चलेति अछि तैं जीबय छी
नहिं पुछु जिनगी कोना कटि रहल अछि
समाप्त
आशिक’राज ’
बाल गजल
एकटा एहन नेनाक मनक बात लिखबाक प्रयास केने छी जिनक माँ आब एहि दुनियाँ मे नहि अछि । अहाँ सब पढ़ू आ कहू जे केहन अछि आ की एकरा बाल गजल क'हज जा सकै यै की नहि ?
आइ तारा केर नगरी सँ एथिन माँ ,
अपन कोरा झट द' हमरा उठेथिन माँ , खेलबै माँ संग आ रूसबै हँसबै ,
पकड़ि आँङुर गाम-घर मे बुलेथिन माँ , थाकि जेबै जखन , भोजन करा हमरा ,
गाबि लोड़ी आँचरक त'र सुतेथिन माँ , राम कक्का के परू छैक मरखहिया ,
सुरज के बकरी सँ हमरा बचेथिन माँ , हमर संगी संग माँ के घुमै सर्कस ,
आबि घर हमरो सिनेमा ल' जेथिन माँ , कत' सँ एलै मेघ कारी इ , अंबर मे ,
"अमित" मन डेराइ यै कखन एथिन माँ . . . । । फाइलातुन-फाइलातुन-मफाईलुन
2122-2122-1222
बहरे-कलीब
अमित मिश्र
अपन कोरा झट द' हमरा उठेथिन माँ , खेलबै माँ संग आ रूसबै हँसबै ,
पकड़ि आँङुर गाम-घर मे बुलेथिन माँ , थाकि जेबै जखन , भोजन करा हमरा ,
गाबि लोड़ी आँचरक त'र सुतेथिन माँ , राम कक्का के परू छैक मरखहिया ,
सुरज के बकरी सँ हमरा बचेथिन माँ , हमर संगी संग माँ के घुमै सर्कस ,
आबि घर हमरो सिनेमा ल' जेथिन माँ , कत' सँ एलै मेघ कारी इ , अंबर मे ,
"अमित" मन डेराइ यै कखन एथिन माँ . . . । । फाइलातुन-फाइलातुन-मफाईलुन
2122-2122-1222
बहरे-कलीब
अमित मिश्र
ढेपमारा गोसाईं
मोबाईलक अलार्मक घर-घरी सुनि कऽ मिश्राजीक निन्न टूटि गेलैन्हि। ओ मोबाईल दिस तकलाह आ अलार्म बन्न करैत फेर सुतबाक उपक्रम करऽ लागलाह। आ की कनियाँक कडगर आवाज कान मे ढुकलैन्हि- "यौ किया अनठा कऽ पडल छी? साढे पाँच बजै छै। उठू, नै तँ बच्चा सभ केँ इसकूल लेल के तैयार करओतैक। हम नस्ता बनाबै लेल जा रहल छी। भरि दिन तँ अहाँ आफिस मे कुर्सी तोडबे करै छी, कनी घरो पर धेआन दियौ।" मिश्राजी बिना कोनो विरोध केने पोस माननिहार माल जाल जकाँ चुपचाप बिछाओन सँ उतरि बाथरूम मे ढुकि गेलाह। निवृत भेलाक बाद बच्चा सब केँ उठाबऽ लगलाह। बच्चा सब हुनकर कुशल नेतृत्व मे इसकूल जयबा लेल तैयार हुए लागल। एकाएक बडका बेटा राजू बाजल- "पापा अहाँ हमर कापी आनलहुँ?" मिश्राजी- "नै, बिसरि गेलहुँ। काल्हि आफिस मे बड्ड काज छल।" राजू बाजल- "अहाँ तीन दिन सँ बिसरि रहल छी। रोज आफिसक काजक लाथे हमर कापी नै आबि रहल अछि। अहाँ केँ हमर काज मोन नै रहैए।" ओम्हर सँ कनियाँक स्वर भनसाघर सँ बहराएल- "इ तँ हिनकर पुरान आ पेटेण्ट बहाना अछि। घरक कोनो काज मे हिनकर कोनो अभिरूचि नै छैन्हि। आइ हम अपने तोहर कापी आनि देबह।" कहुना बच्चा सब केँ तैयार करा मिश्राजी बस-स्टाप धरि बच्चा सब केँ छोडि डेरा अएलाह तँ कनियाँ एकटा नमहर लिस्ट हाथ मे थमा देलखिन्ह। सब्जी, आटा, दूध आ आन वस्तु सबहक लिस्ट। मिश्राजी बजलाह- "कनी दम धरऽ दियऽ। हम बडद जकाँ भरि दिन लागल रहै छी, तइयो अहाँ सब केँ हमरे सँ सिकाईत रहैए।" कनियाँ कहलखिन्ह- "बियाहि कऽ अहाँ आनलहुँ आ सिकाईत करै लए भाडा पर लोक ताकी हम?" बेचारे मिश्राजी चुपचाप बाजार दिस ससरि गेलाह। बाट मे बाबूजीक फोन मोबाईल पर एलेन्हि- "हौ, मकानक देबाल नोनिया गेलैक। रंग करबाबै लए पाई कहिया पठेबहक?" मिश्राजी बिहुँसैत बजलाह- "अगिला मास पाई पठा सकब।" पिताजी खिसियाईत कहलखिन्ह- "कतेको मास सँ तौं अगिला मासक गप कहै छह। इ अगिला मास कहियो आओत की नै।" मिश्राजी केँ अपन गामक सीमान परहक ढेपमारा गोसाईं मोन पडि गेलैन्हि, जकरा पर सब कियो आबैत जाईत एकटा ढेपा फेंकि दैत छलै। हुनका बुझाइ लगलैन्हि जे ओ ढेपमारा गोसाईं भऽ चुकल छथि।
दस बजे मिश्राजी आफिस पहुँचलाह। कनी काल मे आफिसर अपना कक्ष मे बजा कऽ पूछलखिन्ह- "काल्हि एकटा अर्जेण्ट फाईल नोटिंग लए देने छलहुँ आ अहाँ बिना काज केने भागि गेलहुँ।" मिश्राजी- "सर, बिसरि गेलियै। एखन कऽ दैत छी।" आफिसर- "नित यैह बहाना रहैए। किछो यादि रहैए अहाँ केँ?" मिश्राजी सोचऽ लागलाह- "इहो नै छोडलक। कुर्सी पर बैसल अछि तँ हुकूमत देखबैए।" आफिसर हुनका चुप देखि कहलैथ- "की कोनो नब बहाना सोचै छी की? जाउ काज कऽ कऽ दियऽ।" मिश्राजी- "सर, कहलौं ने बिसरि गेल रही। तुरत कऽ दैत छी।" आफिसर- "अच्छा, रोज तँ यैह बहाना रहैए। किछो मोन रहैए की नै? अपन नाम तँ मोन हैत ने। की नाम अछि अहाँक श्रीमान विनय मिश्राजी।" मिश्राजीक मूँह सँ हरसट्ठे निकलल- "ढेपमारा गोसाईं।"
गीत:-

ठुमैक ठुमैक चलै छे गोरी गिरबैत बाट बिजुरिया //२
देख मोर रूपरंग मोन तोहर काटै चौ किये अहुरिया
सोरह वसंतक चढ़ल जुवानी में गिरबे करतैय बिजुरिया //२ मुखड़ा
चमक चमक चमकैय छौ गोरी तोहर अंग अंग
सभक मोन में भरल उमंग देखैला तोहर रूपरंग
ठुमैक ठुमैक चलै छे गोरी गिरबैत बाट बिजुरिया
रूप लगैय छौ चन्द्रमा सन देह लगैय छौ सिनुरिया //२
सोरह वसंतक चढ़ल जुवानी में गिरबे करतैय बिजुरिया
देख मोर रूपरंग मोन तोहर काटै चौ किये अहुरिया
लाल लाल मोर लहंगा पर चमकैय छै सितारा
देख मोर पातर कमर मोन तोहर भेलौं किया आवारा //२
अजब गजब छौ चाल तोहर गोरिया गोर गोर गाल
कारी बादल सन केश तोहर ठोर छौ लाले लाल
चमकैय छे तू जेना चमकैय गगन में सितारा
देख के तोहर रूपक ज्योति मोन भेलैय हमर आवारा //२
मस्त मस्त नैयना मोर गोर गोर गाल
जोवनक मस्ती चढ़ल हमर ठोर लाले लाल
चमकैय छै मोर रूप जेना चमकैय अगहन के ओस
देख के मोर चढ़ल जुवानी उडीगेलय सभक होस //२
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
गुरुवार, 29 मार्च 2012
गजल@प्रभात राय भट्ट
गजल
फुलक डाएरह सुखल सुखल फुल अछी मुर्झाएलवितल वसंत आएल पतझर देख पंछी पड़ाएल
भोग विलासक अभिलाषी प्राणी तोहर नै कुनु ठेगाना
आई एतय काल्हि जएबे जतय फुल अछी रसाएल
अपने सुख में आन्हर प्राणी की जाने ओ आनक दुःख
दुःख सुख कें संगी प्रीतम दुःख में छोड़ी अछी पड़ाएल
कांटक गाछ पर खीलल अछी मनमोहक कुमुदिनी
कांट बिच रहितो कुमुदनी सदिखन अछी मुश्काएल
बुझल नहीं पियास जकर अछी स्वार्थी महत्वकांक्षा
होएत अछी तृप्त जे प्रेम में सदिखन अछी गुहाएल
अबिते रहैत छैक जीवन में अनेको उताड चढ़ाव
सुख में संग दुःख में प्रीतम किएक अछी पड़ाएल
...........वर्ण-२१...................
रचनाकार:-प्रभात राय भ
बुधवार, 28 मार्च 2012
ठेहुन छुबि प्रणाम देखय छी
भेल बहुत बदनाम देखय छी
काली-पूजा, फगुआ छूटल
दारू के परिणाम देखय छी
बापक कान्ह कोदारि सदरिखन
बेटा केर आराम देखय छी
कष्ट झुकय मे नवतुरिया केँ
ठेहुन छुबि प्रणाम देखय छी
अपनापन के बात निपत्ता
घर घर मे संग्राम देखय छी
धन के अर्जन घूसखोरी सँ
हुनके बड़का नाम देखय छी
सुमन सुधारक आशा टूटल
तखनहि केवल राम देखय छी
बाल-गजल
हेरौ बौआ तूँ ऐना रुसल छेँ किए
दूध-भात लेल तूँ बैसल छेँ किए
मुँहमें खूएब आ कोरा बैसाएब
गए कें दूध लेल अरल छेँ किए
किन देब गेन लाल आ घुरकुन्ना
छोर ने जिद्दपन डटल छेँ किए
आबो दहुन बाबा के देठुन पेंरा
पेंरा सन नीक कि नठल छेँ किए
कहबै नाना कें देथुन धेनु गैया
आबो बरेडी पर चढ़ल छेँ किए
वर्ण-१३
रूबी झा
बाल-गजल
चम चम चम चम तारा चमके
बौआ कए हाथक तरुआ गमके
कारी बकरी,नब उज्जर महिष
लाल बाछी किए दौर-दौर बमके
बौआक घोरा सय-सय कए देखू
काका कें घोरा पिद्दी कतेक कमके
बाबी कें साडी मए कें लहंगा बहे
बौआ कें गघरी त कतेक झमके
बौआ हमर आब गुमशुम किए
किएक नै ठुमुक-ठुमुक ठुमके
(सरल वार्णिक, वर्ण-१३ )
***जगदानन्द झा 'मनु'
बौआ कए हाथक तरुआ गमके
कारी बकरी,नब उज्जर महिष
लाल बाछी किए दौर-दौर बमके
बौआक घोरा सय-सय कए देखू
काका कें घोरा पिद्दी कतेक कमके
बाबी कें साडी मए कें लहंगा बहे
बौआ कें गघरी त कतेक झमके
बौआ हमर आब गुमशुम किए
किएक नै ठुमुक-ठुमुक ठुमके
(सरल वार्णिक, वर्ण-१३ )
***जगदानन्द झा 'मनु'
लेबल:
जगदानन्द झा 'मनु',
बाल गजल
मंगलवार, 27 मार्च 2012
मैथिलि--काव्य: Kavita--Maithili
मैथिलि--काव्य: Kavita--Maithili: भोरूकवा मे सुति उठल छलौं तखने छोटकुन बाजि उठल-- 'आब मैथिली रानी समर्थ भेली पाबि संविधान मे स्थान मैथिली रानी धन्य भेली | ' कोयल...
सदस्यता लें
संदेश (Atom)