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शनिवार, 2 अगस्त 2014

मैथिलीमे एकरूपताक अभाब


“कोस-कोसपर बदले पानी, तीन कोसपर बदले वाणी।” ई कथ्य किनकर अछि, हम नहि जानि मुदा अछि जग जाहिर। कोनो एहन सुधी मनुख नहि जे एहि पाँति सँ अनभिक होथि। आ ई कथ्य सोलह आना सत्य अछि। एक गामसँ दोसर गामक इनार पोखरिक पानिमे अन्तर आबि जाइ छैक। ओना आब इनारक जमाना तँ रहल नहि। गामक घरे-घर चापा कऽल चलि गेलै आ शहरक घरे-घर टंकी। टंकीक पानिमे तँ कनिक समानता देखलो जा सकैत अछि मुदा एक आँगनक चापा कऽलक पानिक   स्वाद दोसर आँगनक चापा कऽलसँ भिन्न होएत। परञ्च हम एहिठाम पानिक संदर्भमे गप्प नहि कहि कऽ भाषाक पक्षक मादे कहै चाहैत छी। पानि जकाँ भाषाक मिजाद सेहो सगरो तीन चारि कोसपर बदलल देखाइत छैक। ई असमानता मिथिले-मैथिलीमे नहि भऽ कँ कमबेसी सम्पूर्ण भारतीय वा अभारतीय भाषामे देखार भऽ चुकल अछि आ ओ गुण कोनो भाषाक विकास आ ओकर उन्नतिक पक्षक धियान राखि ठीके अछि। पानिक मादे जेना कोनो नदी हेतु ओहिमे बहाब भेनाइ स्वभाविक छैक नहि तँ ओ नदीसँ डबरा भऽ जेतैक। तेनाहिते कोनो भाषाक चहुमुखी विकास लेल ओहिमे निरन्तर बहाब, अर्थात नव-नव शव्दक वृद्धि, आन-आन भाषाक सटीक आ प्रचलित शव्दकेँ स्वीकार केनाइ आवश्यक छैक। आ दुनियाँक ओ कोनो भाषा जे अपना आपके एकटा बहुत पैघ रुपे स्थापित केलक, ओकर विकासक इहे अबधारना वा गुणक कारने संभब भेल अछि। हमरा इआद अछि जखन अंग्रेगीक प्रथम शव्दकोष बनल रहैक तँ ओहिमे मात्र एक हजार शव्दकेँ जगह भेटल रहैक आ आइ..... ?

मुदा मैथिलीक संगे, ई गुण किछु बेसीए अछि। किएक तँ मैथिल किछु बेसीए बुद्धिजीवी, शिक्षित आ चलएमान छथि। जतए-जतए गेला अपना भाषाकेँ अपना संगे नेने गेला आ ओतुका भाषाक शव्दकेँ अपना संगे जोड़ने गेला। ओनाहितो अपन मिथिलांचलक प्रतेक दू तीन कोसक बादक भाषामे भिन्नता अछि। पछिमाहा मैथिली पुरबाहा मैथिली, दछिनाहा मैथिली उत्तर भरक मैथिली, कमला कातक मैथिली, कोसी कातक मैथिली। एक्के गाममे बड्डकाक मैथिली, छोटकाक मैथिली। नीक गामक मैथिली तँ बेजए गामक मैथिली। शिक्षित मैथिली तँ अशिक्षित मैथिली। आमिरक मैथिली तँ गरीबक मैथिली। एक्के बेर एतेक बेसी असमानता भऽ गेल अछि जे कतेक ठाम तँ मैथिली नहि कहि कऽ दोसर नामसँ संबोधन भँ रहल अछि।

अपन जाहि गुणक कारण दुनियाँक कोनो दोसर भाषा विकासक रस्तापर चलि रहल अछि, ओतए हमर सबहक मैथिली एहि क्रममे पछुआ रहल अछि। एकर की कारण ? तँ उत्तरमे हमरा मैथिलीक एकटा लोकोक्ति इआद आबि रहल अछि। “जे बड्ड होशियार से तीन ठाम गूँह मखे।” एहि लोकोक्तिकेँ कनी फरिछादी; एकटा पढ़ल लिखल विद्वान् गूँह मँखि गेला, आब ओ एहि गप्पक खोजमे लागि गेला जे, जे मखलौं से गूँहे अछि वा किछु आरो। एहि क्रममे ओ पएरक गूँहकेँ अपन हाथक आंगुरसँ छुला बाद नाकसँ सुंघला। लगलनि ने तीन ठाम, पएरमे, हाथक आंगुरमे, अन्तोगत्बा नाकमे। ओतए एकटा दोसर व्यक्ति बेसी खोज बिन नहि पैर कऽ मखला बाद पानिसँ धो लेलक। “अति सर्वत्र वर्जिते,” इहे रोग मैथिली भाषाक विकासमे लागि गेल अछि। जाहि गुणक कारणे हम आगू बढ़ि सकैत छलहुँ, अपन ओहि गुणकेँ कारण ठमैक गेल छी।

एहि गुण, अतिसय गुण वा कही तँ अबगुनकेँ हम समान्य लोककेँ लेल जेनाकेँ तेना छोरिदी, विकास क्रममे समयक संगमे मानिली जे ओ अपने ठीक भए जेतैक। मुदा जे अपनाकेँ बुद्धिजीवी कहैत छथि, शिक्षित आ मैथिली विकासक ठेकेदार अपनाकेँ मानैत छथि तिनका सभकेँ तँ कदापि नहि छोरल जए आ हुनके सबहक एकरूपताक अभाबे मैथिलीक गति अबरुद्ध भेल अछि। एकटा समान्य लोक ककरा देखत, पढ़त ? एकगोट बुद्धिजीवीकेँ, साहित्यकारकेँ, पत्र-पत्रिकाकेँ, ऑडियो-विडिओ मिडियाकेँ मुदा एखुनका समयमे मैथिली भाषाक एकरूपतामे कतौ समानता नहि अछि। एहिठाम हम समान्य लोकक गप्प नै कहि रहल छी, पढ़ल-लिखल, मैथिलीमे ऑनर्स, एमए०, पिएचडी करै बलाक गप्प कए रहल छी। जिनक सबहक कतेको मैथिली पोथी छपा कऽ समान्य लोकक हाथमे आबि गेल अछि, मैथिलीक पत्र-पत्रिकाक सम्पादक आ सम्पादक मण्डलीक गप्प कए रहल छी। कतेको मैथिलीक पुस्तक छापि चुकल प्रकाशकक गप्प कए रहल छी। ऑडियो-विडिओ बेच कऽ अपन कमाइ करै बला चैनल आ म्यूजिक विडिओज कम्पनीक गप्प कए रहल छी।

सदति भाषाक एकरुपताक अभाब अछि। कनिक काल लेल किनको अज्ञान मानि कए क्षमा कएल जा सकैत अछि मुदा ओहि खन कि कएल जे जखन कियो गोटा अपनाकेँ मुख्य सम्पादक, सम्पादक, मैथिलीक ऑनर्स, एमए पिएचडीक चश्मा पहिरने, ओहि घोड़ा जकाँ लगैत अछि, जेकरा आँखिपर हरियर पट्टी बान्हल छैक आ ओकरा सगरो दुनियाँमे हरियरे-हरियर नजरि अबैत छैक। ई बिडम्बना मैथिलीए संगे किएक ? जीवन भरि अपन घर-परिवारमे मैथिली नहि बजै बला मैथिलीक ठीकेदार बनि जाइत छैक किएक ? एहिठाम हम विदेह ग्रुपक प्रसंशा करैत छी जे ओ अन्तर्जाल आ प्रिन्ट दुनू रूपे मैथिली भाषाक समृधि आ एकरूपता लेल भागीरथी प्रयासमे लागल छथि।

कतेको प्रकाशकक पोथी, कतेको लेखक आ साहित्यकारक कृति, कतेको पत्र-पत्रिका, फलाँ फलाँ मैथिली एकादमीक पोथी आ पत्रिका हमरा लग अछि जाहिमे विभक्ति केर प्रयोग हिन्दीक तर्जपर कएल गेल अछि। कतेक मैथिलीक महान-महान विभूतिसँ हम व्यक्तिगत रुपे संपर्क कए हुनका सभसँ निवेदन केलहुँ जे, मैथिलीमे विभक्तिकेँ सटा कए लिखबा चाही मुदा नहि, ओहे आँखिपर पट्टी बान्हल घोड़ा बला हिसाब। एकटा मुख्य-सम्पादक, सम्पादक, ऑनर्स, एमए, पिएचडी, केनहार अपनाकेँ मैथिलीक ठीकेदार बुझनाहर, दोसर लोकक गप्प कोना मानि लेता। लागल छथि सभकेँ सभ मैथिलीकेँ हिंदी टच देबैमे। जीवन होए वा साहित्य ई गप्प मानै बला छैक जे लोक गल्तीए कए कऽ आगू बढ़ैत छैक। मुदा ओइ लोक आ संस्थाक कि जे गल्तीओ करत, गल्तीकेँ मानबो नहि करत, आ बाजु तँ लड़बो करत, ई तँ ओहे गप्प भेल जकर लाठी तकरे भैंस मुदा एहिठाम गप्प भैंसक नहि छैक, एहिठाम गप्प एकटा प्राचीन, समृद्ध आ श्रेष्ठ भाषाक भविष्य आ एकरूपताक छैक।

दुनियाँक सभ समृद्ध भाषामे एना देखल गेलैए जे आम बोलचाल आ साहित्य, शिक्षा वा सार्वजनिक भाषामे भेद पाएल जाइत छैक। आम बोलचाल आ प्रचलनमे बहुत सगरो छूट छैक वा बन्हँन केर आभाव छैक मुदा साहित्य, शिक्षा आ सार्वजानिक मंच हेतु ओहि भाषाक एकटा मानक रूपक प्रयोग कएल जाइत छैक। एहि तरहक अभाब मैथिलीक संगे किएक ? मैथिली साहित्यकार, सम्पादक, प्रकाशक मैथिलीक मानक रूपक प्रयोग किएक नहि करैत छथि। कतेको जन्मान्हर(ज्ञान रुपे) तँ सिखैक डरे एक्के बेर कहता, “चलू चलू अहाँ फलाँ-फलाँ ग्रुपसँ जुड़ल छी ई ओकर सबहक चर्च छै।“ यौ महराज ई चर्च अहाँ लगकेँ अनलक ई नहि देखि, ई देखू जे की अनलक। कनिक देखैक अपन नजरि बदलि लिअ तँ अहूँक विकास आ संगे संग भाषाक विकासक सेहो सम्भावना मुदा नहि हमर एकटा आँखि फूटेए तँ फूटेए तोहर दुनू फोरबौ। आ एहि फोरा फोरीमे ई किनको चिंता नहि जे ओहि माए बाबूक कि हाल जिनक करेजाक टुकरा अपन दुनू छी।

मैथिलीमे एकरूपताक अभाब, इस्थीति, कारण आ निदानपर चर्चा करी तँ एकटा बेस मोटगर किताब बनि जाएत मुदा मैथिलीक अबरुद्ध विकास हेतु हमरा सभकेँ अपन अपन आँखि नै मुनि एहि चर्चाकेँ आगू बढ़ाबए परत। आ अति शीर्घ मैथिलीक वर्तमान पत्र-पत्रिकाक सम्पादक, प्रकाशक, साहित्यकार, लेखक आर कोनो सार्वजानिक मंचकेँ देखनिहार लोकनि सभकेँ मानक मैथिलीकेँ स्वीकार कए ओकरा आगू आनए परत नहि तँ ओ दिन दूर नहि जहिया हमर सबहक धिया पूरा एकरा इतिहासक पोथीमे पढ़त।
© जगदानन्द झा ‘मनु’

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