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गुरुवार, 28 अगस्त 2014

गजल


वेदरदी नै बुझलक हमरो जखन
जीबू कोना जीवन झहरल तखन

घर घर अछि रावण रामक भेषमे
कतए रहती आजुक सीता अखन

दुश्मन बनि गेलै भाइक भाइ अछि
टाकामे भसिएलै कतए लखन

सुखि गेलै ममता मायक कोइखक
भदबरिया पोखरि सन भेलै भखन  

सगरो पसरल ‘मनु’ सहसह दू मुँहा
काइट नै लेए के कतए कखन     

(मात्रा क्रम – २२२-२२२-२२१२)
©जगदानन्द झा ‘मनु’

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