आपस क दे ओ हमरा हमर बितल दिन
किरया तोरा द दे ओ सगर बितल दिन
आब ताकै कतौ नहि भेटतौ तोरा
खुशीसँ ‘मनु’क संग जे तोहर बितल दिन
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
आपस क दे ओ हमरा हमर बितल दिन
किरया तोरा द दे ओ सगर बितल दिन
आब ताकै कतौ नहि भेटतौ तोरा
खुशीसँ ‘मनु’क संग जे तोहर बितल दिन
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
हे कृष्ण गोविंद मुरारी मिता हमर
सगरो दुनिया केर मालिक पिता हमर
छोरि ‘मनु’क करेजा किएक तू गेलअ
घुरि आबअ नहि तँ सजत आब चिता हमर
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
तोरा नहि हम छोड़लौं नहि हम बेवफा
तोरा बिन नहि मरलौं नहि हम बेवफा
प्राण गेल तोहर बुझि नहि जीवैत ‘मनु’
बिन काठीए जरलौं नहि हम बेवफा
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
मीरा केर हरने अहाँ कते दुख छी
साग खाय विदुरकेँ भेल बड्ड सुख छी
हे माधव ‘मनु’ केर अपन भक्ति दय दिअ
सबसँ सुन्नर दुनियामे अहाँक मुख छी
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
पाथर करेजा हमर प्रभु कोमल करु
एतअ रहि अहाँ एहेन सिनेहल करु
संसारक जंजालसँ मुक्ति दय ‘मनु’केँ
अपने चाकरीमे सदिखन राखल करु
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
खड़ाम पैरमे नहि अकास मोनमे छल
कुहास बहुत बाहर इजोत टोनमे छल
टएरकेँ चलाबी गरीब तेँ बुझू नहि
हमर अपन सगर धन अहाँक लोनमे छल
किएक आनके दुख बुझत चलाक नेता
हुनक सगर बुढ़ापा तँ सेफ जोनमे छल
सिनेह शांति सबटा जगतसँ गेल हेरा
अखनसँ नीक बेसी मनुष्य बोनमे छल
पतंग पाछु भागैत मनुक हर्ख देखू
पुतौह केर जेना बहिनसँ फोनमे छल
(मात्राक्रम 121-2122-121-2122, सभ पाँतिमे)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
भहरल भीत नै उठाउ यौ पाहुन
जर्जर टाट नै सटाउ यौ पाहुन
खाली छाड़बै उछेहबै भरि दिन
चार चुबैत नै बचाउ यौ पाहुन
पाकल काँच जेहने धरे भरिमे
बाहर नाक नै कटाउ यौ पाहुन
धधकै आगि खड़ खड़ेल पजरल छै
पाइन ढारि नै जराउ यौ पाहुन
सगरो खाम गेल सड़ि हबेलीके
‘मनु’केँ हँसि क नै बजाउ यौ पाहुन
(मात्राक्रम 2221-212-1222, सभ पाँतिमे। दोसर शेरकेँ, दोसर पाँतिमे दू टा लघुकेँ दिर्घ मानक छूट लेल गेल अछि)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
अहाँ सुनबै जँ नहि हम केकरा कहबै
पिया जुलमी हमर दुख हम कते सहबै
सखी बहिना अहाँके प्रेममे छूटल
पिया हम आब कोना असगरे रहबै
निहोड़ा आब करु हम कोन विधि सजना
सगर उसरैग एही भक्त पर ढहबै
विरहके आगिमे जरि मरि रहल छी हम
अहाँ आइब करेजामे कखन गहबै
रहत नेहक वचन नै यादि ‘मनु’ जा दिन
जहर माहुर अछैते पानिमे बहबै
(बहरे हजज, मात्रा क्रम 1222-1222-1222)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
चलू देखब हे बहीना शिवकेँ
अपन गौरीकेँ सजनमा शिवकेँ
सभक ई खाली भरै छथि झोली
सरण आइब जे सुमरला शिवकेँ
गरीबोकेँ छथि इहे सुननाहर
दियौ जल भरि एक लोटा शिवकेँ
मनुख दानव देव भूत प्रेतो
सगर दुनिया मिल मनेला शिवकेँ
सिया रामोकृष्ण हुनके पुजलनि
बनेलनि सगरो अराध्या शिवकेँ
कृपानिधि कैलाशवासी जय भव
चरण वंदन जग रचैता शिवकेँ
मनोरथ सब पूर्ण करता शम्भू
कहल ‘मनु’ जे मनसँ भजता शिवकेँ
(मात्राक्रम- 1222-2/ 1222-2)
सुझाव, मार्गदर्शन व आलोचना सादर आमंत्रित अछि।
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
जखन कखनो जे सोचब हमरा
अपन लअगेमे पायब हमरा
गजल हमर शव्द बनि तनमनमे
कचोटत तँ अहाँ ताकब हमरा
बहुत दुर छी कोनो बाते नै
अपन मोनेमे देखब हमरा
दुनू दू तन एक्के जिनगी छी
अहाँ कखनो नै बिसरब हमरा
अहाँकेँ हम छी कहलौं जे ‘मनु’
कि मुइला बादो मानब हमरा
(बहरे गोविंद, मात्राक्रम : 12 22 22 22 2, सभ पाँतिमे। दोसर शेरकेँ दोसर पाँतिमे दूटा अलग-अलग लघुकेँ दिर्ध मानक छुट लेल गेल अछि)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
दर्द देखायब करेजाक मानब की
काल्हि सपनोमे हँसी छोरि कानब की
प्रेम पुरुषक छैक गोबर अहाँ कहलौं
चीर देखायब करेजा तँ गानब की
दोख सभमे नै कतउ एकमे हेते
संग हमरा ओहिमे सभक सानब की
आइ छै अन्हार सगरो अहाँ कहलौं
आँखि मुनि लाइटसँ अन्हार आनब की
कनिक हमरोपर भरोसा क कय देखू
प्रेम ककरा छै कहै 'मनु'सँ जानब की
(बहरे कलीब, मात्राक्रम : 2122-2122-1222)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
भगवती जकर माए ओ टुगर कहल कोना
हाथ छै दुनू भेटल रंक ओ रहल कोना
माथ पर हमर सदिखन जखन हाथ मैयाकेँ
एहिठाम रहलै कोनो कठिन टहल कोना
लेब छोरि कखनो देबाक बात कनि सोचू
सगर गाम देखू सुख शांति नहि बहल कोना
शेरकेँ घरे बैसल नहि शिकार भेटै छै
घरसँ जे निकलबै नहि घर बनत महल कोना
काज नहि अपन हिस्सा केर ‘मनु’ करी हम सब
ई सहज सगर दुनिया नहि बनत जहल कोना
(मात्राक्रम : 212-1222/ 212-1222 सभ पाँतिमे)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’