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सोमवार, 1 सितंबर 2025

गजल

नुका कय मुँह अपन सगरो कनै छी हम 

विरहकेँ आगिमे  सदिखन जरै छी हम 


लगा नेहक किए ई आँच चलि गेलौं

करेजक दर्द  सहियो नै सकै छी हम

 

लगन एतेक सतबै छै बुझल नै छल
विछोहे राति दिन घुटि-घुटि मरै छी हम 

 

नजरिमे हम जगतकेँ छी  बताहे टा

बुझत की लोक आनंदे रहै छी हम

 

पिया ओता हमर ई सोचि जीबै छी

लगोने आश ‘मनु’ रस्ता तकै छी हम 

 
(बहरे हजज, मात्रा क्रम : 1222-1222-1222)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’