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शनिवार, 16 दिसंबर 2023

गजल

हँसि क’ तोरब मोन नहि हम सीखने छी

नहि  करेजामे सभक घर छेकने छी

 

हम तँ लूटेलौ जतय तन मन जनम भरि

हाथ हुनकर बहुत माहुर चीखने छी 

 

आश छल अपनो समयमे  रंग हेतै

दूर रंगक  ओहि टोलसँ एखने छी

 

कीनबाकेँ लेल शहरक वास दू धुर

चास गामक तीन बीघा बेचने छी

 

करु शिकाइत एहि दुनियाकेँ कते ‘मनु

लैत मीतक  जान  सगरो  देखने छी

(बहरे रमलमात्राक्रम 2122-2122-2122)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु