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शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

गजल

हेतै खतम गुटबाज बेबस्था
बनतै सभक आवाज बेबस्था

भेलै बहुत चीरहरणक खेला
राखत निर्बलक लाज बेबस्था

देसक आँखिमे नोर नै रहतै
सजतै माथ बनि ताज बेबस्था

मिलतै सभक सुर ताल यौ ऐठाँ
एहन बनत ई साज बेबस्था

"ओम"क मोन कहि रहल छै सबकेँ
करतै आब किछु काज बेबस्था

दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-लघुदीर्घ-दीर्घ-लघु-दीर्घदीर्घ-दीर्घ प्रत्येक पाँतिमे एक बेर।

२२२१-२२१२-२२

शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

गजल



प्रेम कलशसँ अमृत अहाँ पीया तँ दिअ
मुइल जीवन फेरसँ हमर जीया तँ दिअ

काल्हि नै बाँचत शेष जीवन केर किछु
एकटा सुन्नर अपन सन धीया तँ दिअ

रहअ दिअ हमरा आब चाही प्राण नै
मैरतो  बेरीया अपन हीया तँ दिअ 

प्राण बिनु देहक हाल देखू आब नै
बाटपर ओगरने आँखिकेँ सीया तँ दिअ

जाइ छी ‘मनु’ पाछूसँ नै टोकब अहाँ
अपन हाथसँ काठी कनी दीया तँ दिअ

(बहरे हमीम, मात्रा क्रम- २१२२-२२१२-२२१२)
जगदानन्द झा ‘मनु’