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गुरुवार, 17 अक्टूबर 2013

गजल


कोना अहाँकेँ घुरि कहब आबै लेल
बड़ दूर गेलहुँ टाका कमाबै लेल

नै रीत कनिको प्रीतक बुझल पहिनेसँ
टूटल करेजा अछि किछु सुनाबै लेल

लागल कपारक ठोकर जखन देखलहुँ
नै आँखिमे नोरक बुन नुकाबै लेल

बुझलहुँ अहाँ बैसल मोनमे छी हमर
ई दूर गेलहुँ हमरा कनाबै लेल

कोना कऽ ‘मनु’ कहतै आब अप्पन दोख
घुरि आउ फेरसँ दुनियाँ  बसाबै लेल

(बहरे- सलीम, मात्रा क्रम-२२१२-२२२१-२२२१)                             
जगदानन्द झा मनु’

2 टिप्‍पणियां:

  1. बड्ड सुन्नर ग़ज़ल. सत्ते टाका कमाबैक लेल कते तरहक बिरह से गुज़रय परय छै.

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  2. आ कनी ई आखरक जांच ब्लॉग पर सय हटा लेबे तै टिप्पैन करय मैं सुबिधा हेते सब कय.

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