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शनिवार, 26 अक्तूबर 2024

गजल

तारीमे कतए मद जे चाही जीबै लेल

माहुरमे कुन जीवन चाही जे चीखै लेल 

 

बाँकी नै तारीएटा टूटल मनकेँ लेल

जीवनमे एकर बादो बड़ छै पीबै लेल

  

सिस्टममे फाटल छै मेघसँ धरती धरि कोढ़

एतै कतयसँ दरजी सिस्टम सीबै लेल

 

जीतब हारब सदिखन लगले छै जीवन संग

फेरसँ उठि कोशिश नमहर हेतै जीतै लेल

 

खेती मोनसँ करबै ‘मनु’ जीवनकेँ तैयार

कर्मक बीया सगरो बहुते अछि छीटै लेल

 

(बहरे विदेह, मात्राक्रम- 2222-2222-222-21 सभ पाँतिमे)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


शुक्रवार, 5 जुलाई 2024

रुबाइ

मुँह पर दरद आबि जेए  मरद नै

हर बहैत जे  बसि जेए  बरद नै 

जिम्मेदारी घरक  गेल विदेशमे 

‘मनु’ केना बुझलक जेए  दरद नै

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

मंगलवार, 2 अप्रैल 2024

जँ हम मरि जाइ कनिको नै अहाँ कानब - गजल

रुबाइ

पागल हम दुनियामे पियार तकै छी

भलमानुस सब सगर वेपार तकै छी

नै कोनो दाम मनुख  मनुखताकेँ

स्वार्थी लोकसँ ‘मनु’ सरोकार तकै छी

   ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु

रविवार, 31 मार्च 2024

गजल

हम बनब चाहै छलौं की  कि बनि गेलौं

प्रेममे प्रियतम अहीँ  केर    सनि गेलौं

 
आश जे परिवारकेँ  आब नहि रहलै

जेब खाली देख सब हीन जनि गेलै

 

सुधि रहल नै बोझ लदने अपन हमरा

प्रेम कनिको भेटते हम तँ कनि गेलौं

          

मोनकेँ भीतर घराड़ी  बसल सदिखन

छल लिखल परदेशके  देश मनि गेलौं                  

 

नेह अप्पन आब नै नेह टा रहलै

मोनमे बसि ‘मनु’ हमर साँस गनि गेलौं

 

(बहरे कलीबमात्राक्रम - 2122-2122-1222 सभ पाँतिमे)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु

 

मंगलवार, 26 मार्च 2024

रुबाइ

बिनु अहाँक फगुआ कतेक बेरंग अछि 

शेष बचल अहाँक यादेटा संग अछि

एही दुनियासँ  जहन अहाँ चलि गेलौं 

बुझलौं कतेक कठिन जीवनक जंग अछि                

                  ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’    

शनिवार, 17 फ़रवरी 2024

गजल

पोथीक तर दबि पढ़ुआ सगर मरि गेल

जे प्रेममे  डूबल जीविते तरि गेल 

 

सदिखन जतय मनमे छल डरक आतंक 

अबिते अहाँके नव फूल फल फरि गेल


धरती तपल छल जे पानि बिन तरसैत

हथियाक हँसिते बरखा निमन परि गेल

   

आनक सुखक चिंता बेस अप्पन दुखसँ

डाहसँ कतेको घर तेल बिन जरि गेल 

      

पाथरसँ मनु शाइर बनि रहल अछि आब

तोरासँ जे  मृगनयनी  नजरि लरि गेल 

(बहरे सलीममात्रा क्रम - 2212-2221-2221)

जगदानन्द झा ‘मनु

 

बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

जे नै पढ़ब हुनकर सातो विदिया नाश - Ishanath Jha

वसंतोत्सव प्रारंभ भ' चुकल अछि। प्राकृतिक छटा, नैसर्गिक सौंदर्य, अप्रतिम प्रेम, अलौकिक कामक अनुभूतिक दिन आबि चुकल अछि। वसंतक अवतरण आम्रवृक्षक मादक मंजरी आ अशोकवृक्षक रक्त किसलय ओ पुष्पक संग वसंत पंचमी कें प्रकृति आ' मानवीय प्रेमक सजीवन स्नानार्थ महाकुम्भ बना रहल अछि। प्रकृति चारू कात सकारात्मक ऊर्जा कें चरमोत्कर्ष पर पहुँचा देने अछि। विभिन्न कला आ प्रेम प्रकृतिक पीत पुष्प सँ नयनाभिराम सौंदर्य मे पीयर साड़ीमे नवयौवना जकाँ खिलि उठल अछि। तात्पर्य जे चतुर्दिक् प्रसन्नता पसरल अछि।

मुदा, वसंत ऋतुक देवता भगवान मन्मथ मुरझायल सन अशोथकित उदास मुद्रामे अपन महल मे विरहा गाबि रहल छथि। पत्नी श्रीमती रति अपन प्रिय पति श्री कामदेवक एहि क्लांत छविक कारण पुछैत छथि, " प्रियवर ई तऽ अहाँक मास आयल अछि, एखन तँ अहाँक समय थिक  तखन म्लानमुख कियैक ?"

"हे मानिनि देवि रति, हमर प्रभाव प्रतिदिन क्षीण भेल जा रहल अछि, हमर काममयी तीर निस्तेज भेल जा रहल अछि, भोथ भ' गेल अछि लगैए, पृथ्वी परहक मनुष्य पर कोनो असरि नहि करैत अछि। तीव्र वैज्ञानिक प्रगति आ आधुनिकताक अंधानुकरणक फलस्वरूप वासंती मासक प्रकृति प्रदत्त सुषमा शनै:-शनै: क्षीण भेल जा रहल अछि, प्रिये", मिझायल स्वरमे उत्तर देलनि कामदेव।

"स्वामी, पर्यावरण प्रदूषण सँ तs सहमत छी जे भारतवर्षक पृथ्वी पर ओ नैसर्गिक सौंदर्य नहि रहल, मुदा ई मोन नहि मानि रहल अछि जे अहाँक मदनवाण अप्रभावी भ' गेल अछि ! के के नै शिकार भेल छथि ओहि वाण सँ, जे देव, दानव, यक्ष, गंधर्व, किन्नड़ कें नहि छोड़लक से मनुष्य लग केना विफल होएत प्रभु ?"

एवंप्रकारेण दुनू परानी घमर्थन करैत रहलाह मुदा कामदेवक मुखाकृति पर कोनो तरहक ऊर्जाक संचार नहि भेटलनि। "चलू तखन पृथ्वी पर अपन जम्बूद्वीपक वास्तविकताक दर्शन करब, प्रिये !"

ऋतुराज आ रति --- वसुधा पर पदार्पण करैत छथि पाटलिपुत्रक पवित्र धरती पर आ रति एहिठामक हल्ला-हुच्चड़, मारा-मारी, जिंदाबाद-मुर्दाबादक कनफोड़ा ध्वनि सँ हतप्रभ भेल छगुन्तामे जे पड़ि गेली आ कामदेव सँ आग्रह केलनि जे शीघ्रे पड़ाऊ एतय सँ। रतिपति कामदेव राजपथ पर बहुरंगी झंडा धारण केने 'जिंदाबाद-मुर्दाबाद' करैत श्वेतवसनधारी एहि भारी भीड़ कें देखि स्वयं हतप्रभ छलाह। राजभवनक मुख्य द्वारि पर एकटा भीड़ भरल लाइनमे धक्कामुक्की करैत स्वस्थ श्यामल मुष्टंडा पर पर अपन पुष्पवाण छोड़लनि मुदा, ई की ? युवक ओकरा हाथ सँ झाड़ि लेलक आ तरहत्थी कें पोनसँ पोछि फेर जिंदबाद करय लागल। आब अचंभा रति कें भेलनि, तामसो भेलनि। चोट्टहि पतिक संग युवक लग जाए ओकरा पुछलनि, 

"हे रौ मनुक्ख ! तों जुआन छह, स्वस्थ छह, की तोरा 'काम' सँ कोनो लगाव नहि छौ ? कामवाण तोरा पर कोनो प्रभाव कियै नहि छोड़लक ? कथीक दाबी छौ एते जे तों हमर पुष्पवाणक अपमान करमें ?"

खौंझायल युवा नेता चिचिआइत बाजल, " देखै नै छियै काजमे लागल छी ! अहीलेल तऽ भोरसँ निसाभाग राति धरि छिछियाएल फिरैत छी। लाख दुनमरी काज करैत कहुना कें एमएलए बनलौं। आब एखन मौका छै मंत्री बनबाक तऽ हम अहाँमे लटपटा जाऊ? वाह रे देवता ! एकबेर सप्पत खा लै छी संविधानक आ तकरा बाद हम छीहे आ अहूँ छीहे !"

"ई कोन महत्त्वपूर्ण काजमे एते अस्त-व्यस्त छी औ, अहाँक उमेरमे लोक मस्त रहैए !", पस्त होइत ऋतुराज कहलनि।

"हे यौ ऋतुराज, हम एकैसम शताब्दीक भारतमे रहैत छी,

एखने मोबाइल कें आधारकार्ड सँ लिंक कराके अनलहुँ, विभिन्न कोर्ट सँ एनओसी अनने छी आ आब बैंक खाताकें आधारकार्ड सँ लिंक करेबाक लेल लाइनमे पठौने छी अपन दूत सभकें। हमर पत्नी काल्हिए सँ अपन लिंक सँ जोर लगेने छथिए !ओ अभगला पीएं जे दसे बजे किछु इंतजाम करबा लेल गेल से  एखन धरि फोन तक नहि केलक अछि। आ' अहाँ 'काम', 'प्रेम', 'प्रणय' आदि विषय पर प्रवचन द' रहल छी। भारतक कोनो मूर्ख सँ मूर्ख नौजवान लग समय नहि छैक एहि सबहक लेल। एतय सामान्य लोक कें जीबाक लेल आधारकार्ड जरूरी छै। नेता सबकें सरवाइव करबाक लेल सत्ताक शीर्ष पर बैसल लोकसभ सँ लिंक रखबाक आवश्यकता छै ! आ' हे, एकटा सलाह दियऽ, अहूँ अपन वाणक संपूर्ण स्टॉक कें आधार सँ लिंक करा ने लियऽ तखने ओकर महिमा वा ई कहू जे वैधता आपस आएत ! ई कहैत युवक लाइनमे आगू ससरि गेल।

रति महारानी 'लिंक' शब्दक अर्थमे ओझराएल रहली आ कामदेव ठोहि पाड़िकें कानय लगलाह !

प्रश : जखन सप्पत खाइ बेरमे विद्या साते टा होइ छै तखन मैथिलक लेल तेरहम विद्या की होइ छै?

■ईशनाथ झा

शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2024

गजल

नीक केहन आइ सगरो रीत भेलै

प्रेम जकरा  देलियै  तीत भेलै

 

जेब खाली साँझ हम बाजार गेलौं

जे कियो  बुझलकै भयभीत भेलै

 

बोल सोहेतै किए ककरो गरीबक

आब धनिकक गाइरो नव गीत भेलै

 

जन्म भरि गिरगिट जकाँ जे रंग बदलै

ओकरे सभके किए  जीत भेलै

 

भाइ भैयारीक मुँह चाटै कुकुर ‘मनु

लाख सोशल मीडिया पर मीत भेलै

 

(बहरे रमलमात्रा क्रम 2122-2122-2122)

जगदानन्द झा ‘मनु

 

शनिवार, 16 दिसंबर 2023

गजल

हँसि क’ तोरब मोन नहि हम सीखने छी

नहि  करेजामे सभक घर छेकने छी

 

हम तँ लूटेलौ जतय तन मन जनम भरि

हाथ हुनकर बहुत माहुर चीखने छी 

 

आश छल अपनो समयमे  रंग हेतै

दूर रंगक  ओहि टोलसँ एखने छी

 

कीनबाकेँ लेल शहरक वास दू धुर

चास गामक तीन बीघा बेचने छी

 

करु शिकाइत एहि दुनियाकेँ कते ‘मनु

लैत मीतक  जान  सगरो  देखने छी

(बहरे रमलमात्राक्रम 2122-2122-2122)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु

रविवार, 26 नवंबर 2023

गजल

टोपीमे लगै  बुढ़ा  झक्कास छै
बुढ़िया बिन अछैते मरै  नै आस छै 
  
गामक आइ केहन असल रखबाड़ छै 
एको धुर बचल ओकरा नै चास छै
  
शिक्षा केर घरमें बिकाइ ज्ञान छै
आजुक राजनीतिक कतेक बिनास छै 
 
पूजै लेल  कन्या तकै सब लोक छै
बनबे लेल कनियाँ तकै अरदास छै
 
बाबू माय एने  बजट बिगड़ैत छै
साढ़ू सारि ‘मनु’ बैंक खासम खास छै
 
मात्राक्रम : 2221-2212-2212 सभ पाँतिमे। तेसर शेरकेँ दोसर पाँतिमे दूटा अलग अलग लघुकेँ दिर्घ मानक छूट लेल गेल अछि।
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु