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सोमवार, 3 मार्च 2014

मिथिलाक माटिसँ सिनेह राखू


सबरंगी बात, आलेख - डा० कैलाश कुमार मिश्र 
नेना जखन रही तँ माए सदिखन कहथि: "बंटि चुटि खाइ राजा घर जाइ , असगर खाइ डोमा घर जाइ" । ई  गप्प तखन कहथि जखन घरमे कोनो खेबाक किंवा खेलबाक बस्तु कम होइत छल आ हम सभ भाइ बहिन बेसीसँ बेसी लेबाक लेल झगड़ा करए लगैत रही। माए केर आज्ञा मुदा वात्सल्यसँ भरल ई होइत छल जे जतबे वस्तु अछि ओकरा अपनामे सामंजस्यक संग बांटि लिअ' । फेर की,जे कियोक भाइ बहिन बटैैत छलहुँ से पूर्ण निष्ठाक संग। सबहक मुँहपर प्रसन्नताक भाव। कमो  समानमे परिपूर्ण होबाक संतोष। हृदयसँ तिरपीत भेल मोन आ मस्तिष्क ।  ओहि समानपर सबहक अधिकार आ ओहि समानसँ सभकेँ सिनेह। जखन ई बात स्मरण करैत छी तँ बुझना जाइत अछि जे इहे बात मैथिली भाषाक प्रति समस्त मिथिलामे आ मिथिलासँ बाहर रहनिहार सभ वर्ग,सम्प्रदाय, जाति, धर्म आदि केर मैथिली समुदायमे किएक नहि होइत छन्हि?  कहीँ मैथिली भाषाक रस आ स्वरक बट्बारामे हमरा लोकनि छोट-पैघ, ऊँच-नीच, जाति-वर्ग क्षेत्र आदिक नामपर कुकरौझ तँ नहि करए लगैत छी?  ई बड़का प्रश्न अछि जकर तहमे जेनाइ आवश्यक। 
मैथिली भाषा आ साहित्यक तुलना कंसार वालीसँ कएल जा सकैत अछि। जखन नेना रही तँ बीचमे एक अधिबेसु महिला साँझ कए कंसार लगबैत छली। आमक गाछक छाहरिमे एकटा फुसही घर आ घरमे एकटा चुल्हा। चुल्हा जरेबाक लेल पात, बाँसक करची आ आन आन तरहक अनेरुआ जारनि। दूटा फुटलाहा तौलाकेँ खपड़ि चुल्हामे चढ़ल। एकटामे बालु आ दोसरमे अन्न भुजबाक प्रयास। गामक घर सभसँ बच्चा एवं आन आन लोक सभ अनाज जेना चाउर, गहुम,बदाम केराउ आदि कंसार वाली लग लए कऽ अबैत छल। कनसार वाली ओहि अन्न सभकेँ दक्षताक संग भुजि दैत छलैक आ बदलामे एक दू मुठ्ठी अन्न अपन मेहनतानाक तौरपर राखि लैत छली। ओहि कंसारपर भुजा भुजेबाक अधिकार सबहक छलैक। सभकेँ ओहि महिलापर विश्वास छलैक। 
हमरा जनैत मैथिलीकें ओहिना सभ वर्ग, जाति आ क्षेत्र (मिथिलाक क्षेत्र )क पिआर आ सिनेह भेटबाक चाही  मुदा एहेन स्थिति अछि नहि। हमरा लोकनि छोट-छोट गप्पपर लड़ैत छी। हालहिँमे जगदीश प्रसाद मंडलकेँ गुवाहाटीक समारोहमे मुख्य अतिथि नहि बनए देल गेलन्हि। नचिकेता जीकेँ पोथीपर हमरा लोकनि उचित धियान नहि देलहुँ। कियोक बजलाह जे विद्यापति हजाम छलाह तँ बहुतो रास लोक आमील पी लेलन्हि। नारा देमय लगलाह जे विद्यापति ब्राह्मण छलाह।  मुख्य गप्प ई अछि जे विद्यापति मिथिलाक गौरव छथि। एक घरीकेँ लेल मानि लिअ' जे विद्यापति हजाम छलाह तँ की ओ महान नहि छथि? महानताकेँ जाति धर्मसँ की मतलब ? विद्यापति जे छथि वा जे छलाह से अपूर्व छलाह। जखन ई विवाद पढ़लहुँ आ पक्ष आ विपक्ष दुनूक वार्तालाप देखल तँ मोन घोर भ गेल। इहे थिक मैथिलीक दशा। हमरा लोकनि मैथिलीक नामपर जाति-पांतिक संकीर्णतामे डूबल छी। धिक्कार अछि!
एखन एक नीक परम्पराक विकास भए रहल अछि। तथाकथित छोट जातिमे मैथिली भाषा, साहित्यक प्रति रुझान बढ़ल अछि। नव-नव कवि , लेखक साहित्यकार, सृजनशीलतामे उत्साहित छथि। नव बिम्ब नब भावनाक जन्म भए रहल अछि। हलांकी किछु लोक जे पहिनेसँ बिना जनने मैथिलीपर धाक जमेने छथि से लोकनि एहि नव रचनाकार लोकनिकेँ अस्तित्वकेँ स्वीकार करबाक लेल तैयार नहि छथि। होइत छन्हि जेना हुनकर बपौती सम्पतिपर दोसरो लोक आक्रमण कए रहल होन्हि। 
ऐना किएक ? मैथिली लोक भाषा अछि। लोकभाषा ओ भेल जकरा लोक व्यवहारमे प्रयोग कएल जाइत होइ। लोकभाषा किसान,खेतिहर, बोनिहर,आ विद्यार्धि-विद्वान, महिला-पुरुष, आ कार्यालय सभकेँ जोड़य बला भाषा थिक। लोकभाषा ज्ञान आ शिक्षाकेँ सम्हारै बला भाषा थिक। लोकभाषा सृजनताक भाषा थिक। लोकभाषा सबहक भाषा थिक । एहि भाषामे अगर अनेरे अतिक्रमण करबैक, एकर आत्माकेँ खंडित कए संस्कृत एवं आन भाषाक कठिन शव्द घुसेरि एकरा जटिल बनेबैक तँँ ई किछु फंतासि लोकक भाषा भ' जाएत। राजनीतिकरण करबैक तँ भाषा अपन साँस तोरए लागत। निष्प्राण होबए लागत।
हमरा लोकनि विद्यापति केर माला जपैत छी मुदा बिसरी जइत छी जे विद्यापति  देसी भाषाक पक्षधर छला। हुनकर गीत आ लोक रचनाकेँ  खेतक हरवाहासँ मंदिरक पुजारी धरि सभ पसीन करैत छल। मिथिलाक महिला लोकनि एक कंठसँ दोसरक कंठक मध्य पीढ़ी दर पीढ़ी विद्यापति पदावलीकेँ जीअने रहलीह।  नहि कोनो पाण्डुलिपि आ नहिए  कोनो पुस्तकालयकेँ  जरुरत परलनि  हुनका लोकनिकेँ । एतवे नहि कतेको
महिला आओर  पुरुष तँ  विद्यापति केर पदावली परमपरामे अबै बला कतेको  रचनाकेँ  विद्यापति नामे जोड़ि देलनि।
बादमे मैथिलीकेँ आवसकतासँ बेसी संस्कृतीकरण होबअ  लागल। लोक सब संस्कृतक शब्दावलीसँ  मैथिलीकेँ  अनेरे जनमानससँ  दूर करबाक प्रकृतिमे लागि  गेलाह । इमहर खाँटी  शब्दावलीक प्रयोग करय वालाकेँ  उपेक्षा  होबअ लागल। खाँटी  शब्दक उपयोग केनाइ  अशिक्षा  आ अज्ञानताक परिचापक होमय लागल। फेर की छल मैथिली छोटसँ छोट होइत गेलीह  अतवे नहि, नहीं मैथिली भाषाकेँ क्षेत्रीयताक आधारपर सेहो बांटी देल गेल।
उँच -नीच कए  देल गेल। पछिमाहा-दछिनाहा, पुबहा कहि ओहि क्षेत्रक लोकक उपहास केलक।  खांटी  मैथिली विलुप्त भेल जा रहिल छली आ संस्कृत  निष्टमैथिली किछु वर्ग आ समुह  केर बंदनी भऽ गेल छली। भाषाकेँ  वर्ग विशेषसँ जोड़ने विधवंसकारी भऽ  सकैत अछि।  एकर जीवंत उदहारण थिक उर्दू भाषा। उर्दूक अर्थ भेल बजार  एकर विकास सैनिक केन्तेनोमेंट एरियामे सैनिक सब जे विभिन्न प्रान्तसँ होएत छल ओ सब स्थानीय लोक सभसँ आपसमे  वार्तालाप करबाक हेतु सम्प्रेषण केर भाषा अथवा बोली विकसित केलन्हि।  बोलीमे कतेको  तरहक भाषाक कतेको  तरहक शव्दक प्रयोग भेलैक सहजताक संग धीरे धीरे उर्दू विकसित होमय लागल। उर्दू  हिन्दवी परम्परामे आगा बढअ लागल। समस्त उत्तर भारत पंजाब आजुक पाकिस्तान पूर्वी भारत अर्थात बिहार आ पूर्वी उत्तर प्रदेश  धरि  ई  प्राणवान भ गेल। ई जनमानस केर भाषा भ  गेल। प्रेमचंदसँ  ल क आगाँ  सब कियोक उर्दूमे लिखय लगलाह। पूरा पंजाब
हरयाणा आ कश्मीरक हिस्सा  उर्दूमय भ गेल। एहि भाषामे रचनाक ढेर लागि  गेल। बिभाजनक बाद भारत आ पाकिस्तान दू भाग भ गेल। जे मुसलमान भारतमे बचल रहि  गेलाह कहि नहि किएक उर्दूकेँ मुसलमानक अस्तित्वसँ जोड़ि कए देखए लगलाह। राजनीतिसँ प्रेरित भए नेतासभ उर्दूकेँ मुसलमान वर्गक भाषासँ जोड़ि कए देखए लगलाह। रचना-धर्मितामे मंदी आबए लागल। हिन्दू लोकनि अपनाकेँ हिंदीसँ जोड़लनि। फिराक गोरखपुरी, गोपीचंद नारंग, गुलजार सब कियो उर्दूमे लिख एहि भाषाकेँ समृद्ध केलनि। मुदा उर्दुक गध्य साहित्यमे इजाफा नहि भेल। लोकक मोन टूटि गेलैक। पध्य तँ किछु प्राणवान रहबो केएल मुदा साहित्यक पतन सहजहि  परिलक्षित होइत छैक। जँ मैथिलीकेँ सेहो अहिना रखलहुँ तँ मैथिलीक अस्तित्व डामाडोल  भए जाएत।
मैथिलीमेँ सर्वहारा विचारधाराक विकास केनाइ, नव शव्दकोष आ नव शव्दावलीक विकास, लोक  परम्पराकेँ जोड़नाइ सब वर्गक भाषा आ मनोदशा बुझनाइ आवश्यक अछि।  आबू सब गोटे मिल कए मैथिली भाषा आ साहित्यक विकास करी। तखने एकटा ठोस  मैथिली भाषा आ साहित्यक विकास संभव अछि।   
।।जयति मिथिला, जयति मैथिली ।।
(सभार : मिथिलांचल टुडे पत्रिका) 

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

स्वाभिमान



आब जीबे क की करब,
जखन स्वाभिमाने नै रहल!
अपन पहिचान रहितो,
दोसरक पहिचान ल जीबे छी!!
आब जीबे क की करब,
जखन मातृभूमि सँ दूर भेलौ!
अपन खेत पथार रहितो,
दोसरक खेत पटबै छी!!
आब जीबे क की करब,
जखन मातृभाषा बिसरलौँ!
अपन समृद्द भाषा रहितो,
दोसरक बोली बजै छी!!
   :गणेश कुमार झा "बावरा"

रविवार, 23 फ़रवरी 2014

सगर राति दीप जरए , आन्दोलन आ बभनभोज- अतुलेश्वर


कथा साहित्यक प्रकाशन करए वला पत्र-पत्रिका अभावक कारण एकटा प्रश्न ठाढ़ भेल कि यदि मैथिलीक रचनाकारकें अपन रचनाक लेल कोनो मंच नहि भेटत तँ मैथिली आबयवला समयमे रचनाकारक अभाव सँ गुजरि सकैत अछि। आ मैथिली भाषा आ साहियक क्रान्तिकारी पुरुष डा.काञ्चीनाथ झा किरणक जन्म दिवसक अवसर पर लोहना गाममे जे समारोह आयोजन भेल छल ओहिमे पंजाबी भाषामे जहिना भरि रातिक कथा गोष्ठी कयल जा रहल छल ओहिना मैथिली भाषामे आरम्भ कयल जाए। आ कथा साहित्यक पुरोधा आ युवा साहित्यकारक पथपर्दशक स्व. प्रभाष कुमार चौधरीक नेतृत्वमे ई आन्दोलन प्रारम्भ भेल । कहल जा सकैछ जे काल सापेक्ष ई आन्दोलन मैथिली साहित्य लेल वरदान साबित भेल,कारण कतेको कथाकार, आलोचक एहि आन्दोलन सँ मैथिली साहित्य मध्य उपस्थित भेलाह तँ दोसर दिश एक नव आलोचनाक बाट फूजल। मुदा आइ काल्हि तँ एहि मे कथाक चर्चा सँ बेशी मानकीकरण,कखनो जातिवाद,कखनो भत्ताक गप्प होइत अछि। एतेक धरि जे कथाक गोष्ठीक अस्मिता पर कुठाराघात करैत किछु मैथिली अहित सेवी लोकनि ओकरा सरकारी संस्थाक कार्यक्रमसँ जोड़ि ओकर अस्मिता आ स्वतंत्रताक नष्ट करबाक प्रयास क’ रहल छथि। कारण जखनहिं साहित्य अकादेमी आ सरकारी संस्था सभसँ जोड़ल जाएत तँ एहि गोष्ठी सँ जनसहभागिता कम भेल जाएत आ कथा गोष्ठी अपन उद्देश्यक बाटसँ भटकि जाएत ई षडयंत्र हमरा जनैत एहि कारणेँ कएल जा रहल अछि , जे मैथिलीमे नव-नव रचनाकारक अभाव हुअए आ मैथिली साहित्य किछु वर्ग धरि सिमटि जाए। एहि तरहेँ बहुतों गोटा एहि बेरक कथा गोष्ठीकेँ सगर राति दीप जरएक श्रृंखला सँ नहि जोड़बाक आग्रह कयलन्हि अछि समर्थन हमरो अछि,कारण यदि हम सभ विरोध नहि करब तखनि ई लोकनि हमर सभक अस्मिता पर एहिना आघात कयल करताह आ जेकरा रोकब आवश्यक अछि, एहि लेल एकजूट होयब जरूरी अछि।नहि तँ एकटा आन्दोलन षडयंत्रक फाँसमे समाप्त भ’ जाएत।
हँ एहि गोष्ठी मे एकटा बात उठल छल जे बभनभोज। गोष्ठी कथा गोष्छी नहि भ’ बभनभोज भ’ गेल , ई सगर राति दीप जरए लेल एकटा आर आघात भेल । आशा करब आदरणीया विभा रानी सँ जे एहि आन्दोलनक दीपकेँ उद्देश्य सँ नहि भटकय देथि पुनः माँ जानकीक भाषा मैथिलीक आन्दोलन अपन उद्देश्य मे लागि जाए। आ सगर राति दीप जरए मैथिली कथा साहित्यक दीपकेँ मात्र जरौने टा नहि रहए ओ सम्पूर्ण विश्वमे मैथिली कथा साहित्यक दीप जगमगबैत रहए । एहि कामनाक संग हम सभ पुनः अपन आन्दोलनक नेतृत्व स्वयं करी आ घुसपैठिया लोकनिकेँ एहि आन्दोलन सँ भगाबी । एहि उद्देश्य संग दक्षिण भारत आबि आ माँ जानकीकेँ मोन पाड़ि।

शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

कथा मि‍लन सदाय-सगर राति‍ दीप जरय केर 80म गोष्‍ठी (निर्मलीमे आयोजि‍त)-80म सगर राति‍ दीप जरय'' निर्मलीमे 45 गोट पोथीक लोकार्पण-रिपोर्ट उमेश मण्डल




80म सगर राति‍ दीप जरय'' निर्मलीमे 45 गोट पोथीक लोकार्पण-

बाल निबंध-

1. देवीजी (ज्योती झा चौधरी) कवि‍ राजदेव मण्डल

वि‍वि‍धा-

1. कुरुक्षेत्रम अन्तर्मनक- (गजेन्द्र ठाकुर) डॉ. बचेश्वर झा

शब्द.कोष-

1. अंग्रजी-मैथि‍ली शब्दकोष- (गजेन्द्र ठाकुर) डॉ. रामाशीष सिंह
2. मैथि‍ली-अंग्रेजी शब्दकोष- (गजेन्द्र ठाकुर) डॉ. अशोक अवि‍चल
वि‍हनि‍ कथा संग्रह-
1. बजन्ता-बुझन्ता (जगदीश प्रसाद मण्डाल) अनुमण्‍डलाधि‍कारी अरूण कुमार सिंह
2. तरेगन- दोसर संस्करण (जगदीश प्रसाद मण्डल)- वि‍धायक सतीश साह

लघु कथा संग्रह-
1. सखारी-पेटारी (नन्द वि‍लास राय) डॉ. शि‍वकुमार प्रसाद
2. उलबा चाउर (जगदीश प्रसाद मण्डल) वि‍नोद कुमार ‘वि‍कल’
3. अर्द्धांगि‍नी (जगदीश प्रसाद मण्डल) दुर्गानन्द मण्डल
4. सतभैंया पोखरि‍ (जगदीश प्रसाद मण्डल) प्रो. जयप्रकाश साह
5. भकमोड़ (जगदीश प्रसाद मण्डल) फागुलाल साहु

दीर्घ कथा संग्रह-

1. शंभुदास (जगदीश प्रसाद मण्डल) सदरे आलम गौहर

कवि‍ता संग्रह-

1. बसुन्धरा (राजदेव मण्‍डल) गजलकार ओम प्रकाश झा
2. राति‍-दि‍न (जगदीश प्रसाद मण्डल) रामजी प्रसाद मण्डल
3. रथक चक्का उलटि‍ चलै बाट (रामवि‍लास साहु) नाटककार बेचन ठाकुर
4. नि‍श्तुकी दोसर संस्‍करण (उमेश मण्डल) जनकवि‍ रामदेव प्रसाद मण्डल ‘झारूदार’
5. इन्द्र्धनुषी अकास (जगदीश प्रसाद मण्डल) पत्रकार राम लखन यादव
6. प्रतीक (मनोज कुमार कर्ण मुन्नाजी) अधि‍वक्‍ता वीरेन्द्र कुमार यादव

गजल संग्रह-

1. क्यो जानि‍ नै सकल हमरा (ओम प्रकाश झा) साहि‍त्‍यकार जगदीश प्रसाद मण्डल
2. माझ आंगनमे कति‍याएल छी (मनोज कुमार कर्ण मुन्नाजी) गायक रामवि‍लास यादव
3. मोनक बात (चन्दन कुमार झा) डॉ. शि‍वकुमार प्रसाद
4. अंशु (अमि‍त मि‍श्र) कथाकार कपि‍लेश्वर राउत

गीत संग्रह-

1. गीतांजलि‍ (जगदीश प्रसाद मण्डल) अमीत मि‍श्र
2. तीन जेठ एगारहम माघ (जगदीश प्रसाद मण्डल) चन्दन कुमार झा
3. सरि‍ता (जगदीश प्रसाद मण्डल) बालमुकुन्द
4. सुखाएल पोखरि‍क जाइठ (जगदीश प्रसाद मण्डल) बि‍पीन कुमार कर्ण
5. हमरा बि‍नु जगत सुन्ना छै (रामदेव प्रसाद मण्डल ‘झारूदार’) अधि‍वक्‍ता मनोज कुमार बि‍हारी
6. क्षणप्रभा- (शि‍व कुमार झा ‘टि‍ल्लू‘’) राजाराम यादव

अनुवाद साहि‍त्य-

1. पाखलो (उपन्यास (कोंकणीसँ हि‍न्दी सेवी फर्णांडि‍स एवं शंभु कुमार सिंह तथा हि‍न्दी‍सँ मैथि‍ली शंभु कुमार सिंह- कवि‍ शंभु सौरभ

नाटक-

1. रि‍हलसल (रवि‍ भूषण पाठक) कवि‍ राम वि‍लास साफी
2. बि‍सवासघात (बेचन ठाकुर) बाल गोवि‍न्द यादव ‘गोवि‍न्दाचार्य’
3. बाप भेल पि‍त्ती आ अधि‍कार (बेचन ठाकुर) कवि‍ रामवि‍लास साहु
4. रत्नाकार डकैत (जगदीश प्रसाद मण्डल) कि‍शलय कृष्ण
5. स्वयंवर (जगदीश प्रसाद मण्डल) कवि‍ शंभु सौरभ
6. पंचवटी एकांकी संचयन- (जगदीश प्रसाद मण्डल) उपन्‍यासकार राजदेव मण्डल
7. कम्‍प्रोमाइज- (जगदीश प्रसाद मण्डल) कथाकार राम प्रवेश मण्डल
8. झमेलि‍या बि‍आह (जगदीश प्रसाद मण्डल) अधि‍वक्‍ता वीरेन्द्र् कुमार यादव

उपन्यास

1. हमर टोल (राजदेव मण्डल) कवि‍ हेम नारायण साहु
2. जीवन संघर्ष (दोसर संस्करण) जगदीश प्रसाद मण्डाल) नारायण यादव
3. बड़की बहि‍न (जगदीश प्रसाद मण्डल) कवि‍ शारदा नन्द सिंह
4. जीवन-मरण (दोसर संस्करण) (जगदीश प्रसाद मण्डल) डाकबाबू छजना
5. नै धाड़ैए (बाल उपन्यास, जगदीश प्रसाद मण्डल) गुरुदयाल भ्रमर
सह्त्रबाढ़नि‍ (ब्रेल लि‍पि‍) गजेन्द्र ठाकुर) शि‍क्षक मनोज कुमार राम

वायोग्राफी-

1. जगदीश प्रसाद मण्डल एकटा वायोग्राफी- (गजेन्द्र ठाकुर) कवि‍ उमेश पासवान
संस्‍मरण साहि‍त्‍य-
मध्य प्रदेशक यात्रा (ज्योति‍ झा चौधरी) कथाकार नन्द वि‍लास राय

80म कथा गोष्ठी “कथा मि‍लन सदाय-सगर राति‍ दीप जरय” निर्मलीमे पठि‍त कथा एवं कथाकारक नाओं-
1. जीवपर दया करी- पल्लवी कुमारी
2. स्पेशल परमीट- ओम प्रकश झा
3. ढेपमारा गोसाँइ- ओम प्रकाश झा
4. ओ स्त्री - सदरे आलम गौहर
5. बाल अधि‍कार- नारायण झा
6. मांग- अमि‍त मि‍श्र
7. नवतुरि‍या- अमि‍त मि‍श्र
8. जनता लेल- अमि‍त मि‍श्र
9. थ्रीजी- मुकुन्द मयंक
10. पढ़ाइ आ खेती- बि‍पीन कुमार कर्ण
11. बदरि‍या मूसक घर- उमेश पासवान
12. अपन घर- लक्ष्मी दास
13. मि‍त्र- नारायण यादव
14. प्रेम एगो अचम्भा - बाल मुकुन्द पाठक
15. भगवानक पूजा- संजय कुमार मण्डल
16. वि‍पन्नता- पंकज सत्‍यम
17. गौतमक अहि‍ल्या-- दुखन प्रसाद यादव
18. तरकारीक चोर- ललन कुमार कामत
19. व्यंग्य- मि‍थि‍लेश कुमार व्यास
20. खेनि‍हारक लेखा- चंदन कुमार झा
21. चाहबला- कपि‍लेश्वर राउत
22. बि‍लाइ रस्ता काटि‍ देलक- राम वि‍लास साहु
23. भैरवी- रौशन कुमार झा
24. संदेह- शारदा नन्द सिंह
25. अंधवि‍श्वास- शम्भू सौरभ
26. डीजे ट्रोली- बेचन ठाकुर
27. मुखि‍याजी सँ मंत्री धरि‍ एक्के रंग- दुर्गा नन्द ठाकुर
28. कारागार- कि‍शलय कृष्ण
29. पैघ लोक के?- नन्द वि‍लास राय
30. पेंच-पाँच- शि‍व कुमार मि‍श्र
31. महेशबाबूक चौकपर एकदि‍न- गौड़ी शंकर साह
32. परि‍वर्त्तन- राजदेव मण्डल
33. एकघाप जमीन- जगदीश प्रसाद मण्डल
34. गइ बुढ़ि‍या हम बड़ बि‍हर छी- डॉ. शि‍व कुमार प्रसाद
35. भीखमंगा- डॉ. अशोक अवि‍चल

मिथिलांचलक प्रसिद्ध साहित्यिक मंच “सगर राति‍ दीप जरय” केर 80म आयोजन जे निर्मली (सुपौल)मे स्थानीय कलाकार स्व. मि‍लन सदाय केर नाओंपर आयोजित छल तइ कथा गोष्ठीमे जे समीक्षक-आलोचक सभ पठि‍त कथापर समीक्षा केने रहथि‍, आलोचना केने रहथि‍ से सूची निम्न अछि‍-
डॉ. शिव कुमार प्रसाद
ओम प्रकाश झा
राजदेव मण्डल
जगदीश प्रसाद मण्डल
डॉ. अशोक अवि‍चल
डॉ. रामाशीष सिंह
उमेश पासवान
चन्दन कुमार झा
राम वि‍लास साहु
फागुलाल साहु
पंकज सत्यम्
किशलय कृष्ण
शंभु सौरभ
कपिलेश्वर राउत
बाल गोवि‍न्द यादव गोवि‍न्दा‍चार्य
वीरेन्द्र कुमार यादव
राम वि‍लास साफी
शि‍व कुमार मि‍श्र
दुर्गानन्द मण्डल
नारायण यादव
संजय कुमार मण्‍डल
राम प्रवेश मण्डल
नारायण यादव
बालमुकुन्द पाठक
बेचन ठाकुर
दुर्गानन्द ठाकुर
शारदा नन्द सिंह
हि‍न्‍दुस्‍तान (सुपौल एवं मधुबनी संस्‍करण) दैनि‍कमे प्रकाशि‍त

बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

अन्हार



अहाँ सोचैत की रहैत छी ?
हऽम !
हम सोचैत नहि छी
हम देखैत छी
हम दुनीयाँकेँ बुझैक प्रयत्न कए रहल छी
कि हमहूँ एहि दुनीयाँक हिस्सा छी?
कि हम देशक हिस्सा छी ?
कि हम एहि राजक हिस्सा छी ?
कि हम एहि समाजक हिस्सा छी ?
कि हम अपन परिवारक हिस्सा छी ?
नहि ! नहि ! नहि ! नहि !
तँ फेर हमर अस्तित्व की अछि ?
हम एहिठाम किएक एलहुँ ?
हम एहिठाम किएक छी ?
हम एहिठाम की कए रहल छी?
किछु नहि
पत्ता नहि
नहि जनैत छी
किछु नहि
नहि ! नहि ! नहि ! नहि !
किछु नहि
किछु नहि अर्थात शून्य 
शून्य
अन्हार
नाकामयाबी
अलगाव ।

एहि जिनगीक कोन मोल
जकर किछु सार्थकता नहि
जन्म लेनाइ
अभाबमे पोसेनाइ
सपनाक गरदैन घोटनाइ
माथपर जिमेदारी आ चिन्ताक बोझ
असफलता
शून्यता
फेर एक दिन
सभ चिन्तासँ मुक्त भऽ
लुप्त भऽ जेनाइ
काल्हि
जाहिखन एकटा नव भोर होएत
केकरो मोनमे इआद नहि
केकरो मुँहमे नाम नहि
इतिहासक पन्नामे कथा नहि
फेर एकटा शून्य
घोर अन्हार
अपार अन्हारक साम्राज्य
जाहिठाम
आन कि अपनो सभ इआद नहि राखत ।

की इहे जिनगी छी ?
एकरे नाम जीवन अछि ?
इहे मनुक्खक जीवन पाबैक हेतु
चौरासी लाख योनी पार करए परैक छैक
एहिठाम की भेटल
खाली शून्य
घोर अपार अन्हार
यदि हाँ
इहे जीवन अछि
इहे जीवनक सार अछि
तँ, हे भगवती
हमरापर दया करू
हमरापर कृपा करू
हमरा अहाँक ई जीवन नहि चाही
हमरासँ नीक तँ कीड़ा मकोड़ा
मानलहुँ कि ओकरो लग बड्ड शून्य छैक 
घोर अन्हार छैक
मुदा
अभाब नहि छै
असफलता नहि छै
निराशा नहि छै
चिन्ता नहि छै
माथपर बोझ नहि छै
ओ अपनाकेँ तुक्ष नहि बुझै छै
आर
फेर ओकरा
एकटा नव उच्च जीवन पाबैक आशो तँ छैक ।

हमरा लग की अछि ?
किछु नहि
खाली आर खाली घोर अन्हार
हम जन्म लै छी
आ ओकरा तियाइग कए
एकटा अनन्तमे हरा जाइ छी
काल्हि
हमर नामो धरि नहि रहि जाइए
हे भगवती
कि हमरा सभकेँ
एहने जीवन भोगैक लेल
जीवन देने छी
तँ कृपा कऽ अपन जीवन लए लिअ
हमरा सभकेँ एहेन जीवन नहि चाही
कमसँ कम
हमरा तँ बिल्कुल नहि
हमरापर दया करू भगवती
अपन ई जीवन लऽ लिअ ।
 
@ जगदानन्द झा ‘मनु’

सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

चलू मिथिला



घुइर चलू घुइर चलू मैथिल
अपन मिथिला देश
बाट जोहै छथि माए मिथिला,
आँचर मे लऽ स्नेहक सनेश।
उजइर पुजइर गेल छै ओकर
सभटा खेत पथार
गाम घर सभ भक्क पड़ल छै
डिबिया बाती नै जरै छै
देख ई दशा
माए मिथिला के फाटै छै कुहेश ।...
जाहि धरा पर बहैत अछि
सात सात धार
आई ओहि धरा के छाती अछि सुखाएल
खाए लेल काइन रहल अछि नेन्ना भुटका
माइर रहल छथि माए मिथिला चित्कार ।
देखू देखू हे मिथिलावाशी केहन आएल काल
देब भूमि तपोभूमि
आई बनल आतंकक अड्डा
जतऽ कहियो पशु पंछियोँ वाचैत छल शास्त्र
आई ओहि धरा सँ सुना रहल अछि बम बारुदक राग ।
हे मैथिल!
दोसरक नगरी रौशन केलौँ
छोइड़ अपन देश
आबो जँ नै आएब मिथिला
तऽ भऽ जाएत मिथिला डीह 
कुहैर कुहैर क कहैथ माए मिथिला ई..
चलू चलू यौ मैथिल अपन मिथिला देश
फेर सँ बनेबै ओहने मिथिला
देखतै देश विदेश..जय मिथिला
   :गणेश कुमार झा "बावरा"

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

हकार (ओमप्रकाश झा) ८१म सगर राति दीप जरय कथा गोष्ठीक

हकार (ओमप्रकाश झा)
८१म सगर राति दीप जरय कथा गोष्ठीक आयोजन देवघरमे २२ मार्च २०१४ शनि दिन भऽ रहल अछि। ई आयोजन देवघरमे बमपास टाउन स्थित "बिजली कोठी" नम्बर ३ मे संध्या ५ बजे सँ २२ मार्च २०१४ केँ शुरू भऽ कऽ २३ मार्चक भोर धरि हएत। अहाँ सभ कथाकार लोकनि सादर आमंत्रित छी।

शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

गजल

हेतै खतम गुटबाज बेबस्था
बनतै सभक आवाज बेबस्था

भेलै बहुत चीरहरणक खेला
राखत निर्बलक लाज बेबस्था

देसक आँखिमे नोर नै रहतै
सजतै माथ बनि ताज बेबस्था

मिलतै सभक सुर ताल यौ ऐठाँ
एहन बनत ई साज बेबस्था

"ओम"क मोन कहि रहल छै सबकेँ
करतै आब किछु काज बेबस्था

दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-लघुदीर्घ-दीर्घ-लघु-दीर्घदीर्घ-दीर्घ प्रत्येक पाँतिमे एक बेर।

२२२१-२२१२-२२

शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

गजल



प्रेम कलशसँ अमृत अहाँ पीया तँ दिअ
मुइल जीवन फेरसँ हमर जीया तँ दिअ

काल्हि नै बाँचत शेष जीवन केर किछु
एकटा सुन्नर अपन सन धीया तँ दिअ

रहअ दिअ हमरा आब चाही प्राण नै
मैरतो  बेरीया अपन हीया तँ दिअ 

प्राण बिनु देहक हाल देखू आब नै
बाटपर ओगरने आँखिकेँ सीया तँ दिअ

जाइ छी ‘मनु’ पाछूसँ नै टोकब अहाँ
अपन हाथसँ काठी कनी दीया तँ दिअ

(बहरे हमीम, मात्रा क्रम- २१२२-२२१२-२२१२)
जगदानन्द झा ‘मनु’