आबि जायब हमर अंतिम बिदाई पर
फूल दय देब हाथसँ मुँह दिखाई पर
नोर नहि देखलक आँखिक कियो जगमे
नजरि सबहक हमर हाथक मिठाई पर
पोसलौं पेट जीवन भरि कमा हम मरि
घेंट लेलक कटा हँसि ओ फिदाई पर
आइ दिन धरि तँ सब सहिते छलौंहेँ हम
आबि जिद गेल पापीकेँ मिटाई पर
केकरा ‘मनु’ कहत आ के सुनत एतअ
सब हँसै छैक आनक पिटाई पर
(बहरे मुशाकिल, मात्राक्रम - 2122-1222-1222)
✍🏻जगदानन्द झा ‘मनु’
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबड्ड नीक लागल मनु । एकदम नव , सजीव साकार भाव ,,,,, लिखैत रही से आग्रह
जवाब देंहटाएंप्रो डॉ शेफालिका वर्मा , दिल्ली
सादर प्रणाम संगे संग हार्दिक धन्यवाद
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