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शनिवार, 12 अगस्त 2023

गजल

भहरल भीत नै उठाउ यौ पाहुन 
जर्जर टाट  नै सटाउ यौ पाहुन 
 
खाली छाड़बै  उछेहबै भरि दिन 
चार चुबैत  नै बचाउ यौ पाहुन
 
 
पाकल काँच जेहने धरे भरिमे 
बाहर नाक नै कटाउ यौ पाहुन 
 
धधकै आगि खड़ खड़ेल पजरल छै
पाइन ढारि नै जराउ यौ पाहुन
 


सगरो खाम   गेल सड़ि  हबेलीके 
‘मनु’केँ हँसि क  नै बजाउ यौ पाहुन
 
(मात्राक्रम 2221-212-1222, सभ पाँतिमे। दोसर शेरकेँ, दोसर पाँतिमे दू टा लघुकेँ दिर्घ मानक छूट लेल गेल अछि)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

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