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शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

गजल

रूप मारूक तोहर देखते कनियाँ
ख़ून देहक सगर भेलै हमर पनियाँ

नै कतौ केर विश्वामित्र छी हमहूँ
प्राण लेलक हइर ई तोर चौवनियाँ

जरि क' तोहर पजारल आगिमे दुनियाँ
माय बापक नजरिमे बनल छै बनियाँ

नीक बहुते गजल कहने छलहुँ हमहूँ
आइ सभ किछु बिसरि बेचैत छी धनियाँ

झाँपि राखू अपन रूपक महलकेँ 'मनु'
भेल पागल कतेको देखि यौवनियाँ
(बहरे मुशाकिल, मात्रा क्रम; 2122-1222-1222)
जगदानन्द झा 'मनु'