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रविवार, 8 जनवरी 2012

कविता -लाचारी

नै जानि किएक हमर डेग
ओय माँ के देख कs रुइक गेल
ओतय तs ओकर नन्किरवा
भूख सँ कनैत जा रहल छल
नन्किरवा कए भूख कए अनुभव कय कs
माय कए नोर सेहो लाल रंग
पकैर लेने छल
ओकर अध्खुजल छाती में
दूध सुखा गेल छल
ओतय किछु हवसी सैतान
माँ के गुम्हैर रहल छल
ओ ओए माँ में
औरत के खोइज रहल छल
अपन आँखि सँ जेना
निमंत्रण दय रहल छल
ओए लाचारी कए
मजबूर माँ दुबिधा कए
सागर में डूबैत
बच्चा कए भूखक वास्ते
कोनो काज करै कए
लेल तैयार छल
समाज कए एहेन व्यथा
कए देख कs हमरा घिरना
भय गेल अपने सँ
हमरा लागल जेना
इ समाज हमरे तs नाम अछि.

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