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सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

गजल

प्रेम कलशसँ अमरित अहाँ पीया तँ दिअ
मुइल जीवन फेरसँ हमर जीया तँ दिअ 
   
काल्हि नै बाँचत शेष जीवन केर किछु
एकटा सुन्नर सन अपन धीया तँ दिअ
 
रहअ दिअ हमरा आब चाही प्राण नै 
मैरतो  बेरीया अपन हीया तँ दिअ

प्राण बिनु देहक हाल देखू आब नै
बाटपर ओगरने आँखिकेँ सीया तँ दिअ 

जाइ छी ‘मनु’ पाछूसँ  नै टोकब अहाँ 
अपन हाथसँ काठी कने दीया तँ दिअ
(बहरे हमीम, मात्रा क्रम : २१२२-२२१२-२२१२)
जगदानन्द झा 'मनु'