मैथिलीपुत्र ब्लॉग पर अपनेक स्वागत अछि। मैथिलीपुत्र ब्लॉग मैथिली साहित्य आ भाषा लेल समर्पित अछि। अपन कोनो तरहक रचना / सुझाव jagdanandjha@gmail.com पर पठा सकैत छी। कृपया एहि ब्लॉगकेँ subscribe/ फ़ॉलो करब नहि बिसरब, जाहिसँ नव पोस्ट होएबाक जानकारी अपने लोकनिकेँ भेटैत रहत।

डा० कैलाश कुमार मिश्र लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
डा० कैलाश कुमार मिश्र लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 30 अगस्त 2025

डॉ. कैलाश कुमार मिश्र जीक उपन्यास मनसरबीक समीक्षा


 समीक्षक - जगदानन्द झा ‘मनु



अंतरजातीय प्रेमपर आधारित, डॉ. कैलाश कुमार मिश्र लिखित उपन्यासमनसरबीमैथिली साहित्य खास कय मैथिली उपन्यास लेल एक गोट अनुपम धरोहर केर रूपमे, मैथिली साहित्य अनुरागी लोकनीक लेल साबित होएत। मिथिला समाजक ताना-बाना, परिवेश, कुरीति, सामाजिक विसमता, नारीक स्थिति अस्तीत्व, धनिक वर्गक द्वारा गरीब सभपर केएल गेल अमानवीय शोषण, धन दैहिक शक्तिक दुरुपयोग, बहु बेमेल ब्याह, वासना, प्रेम, निश्छल ईश्वरीय प्रेम, कमोबेश मानवीय संवेदनाक सभ पक्ष केर अपनामे समेटनेमनसरबीमैथिली साहित्यक एकटा उच्चय कोटिक उपन्यास अछि।  

मनोरंजन सहित लेखक सम्पूर्ण पोथीमे रोचकता कौतुहलता बनबैमे पूर्ण रुपसँ सफल भेल छथि। पाठक एकबेर पोथीकेँ पढ़व शुरू केलाक बाद बिना पुरा पढ़ने नहि रहि सकैत छथि।  उपन्यासक भाषा जनमानस के कंठमे बसल सोझ, सरल चित्रात्मक अछि। पढ़ैकालमे सिनेमाक परदा जकाँ मानस पटलपर एक-एकटा दृश्य चलैमान लगैत अछि। आँगन-दलान, खेद-खड़िहान, धूल-माटि, भूख-पिआस, प्रेम-विरह सभ आँखिक आगाँ साक्षात देखाइ लगैत अछि। संवाद स्वाभाविक लयात्मक अछि।मनसरबीउपन्यासमे  समकालीन मिथिलाक ग्रामीण जीवनक  सजीव चित्र जेना संवेदना, यथार्थ लोक-संस्कृतिक केर यथार्थ दर्शन होइत अछि।

मनसरबी, राघव बुलकी केर निश्छल प्रेमक अनुपम प्रेम कथा अछि। राधव संस्कारी, पढ़ल लिखल, बुझनूक, सभकेँ संग लय चलै बला एकटा गामक गरीब ब्राह्मण घरक बेटा अछि। ओतय बुलकी बहुत गरीब गामक अमात घरक बेटी अछि। ब्याह भेला पछाइतो बुलकी अपन सासुर घरबालाकेँ छोड़ि नैहरमे अपन बुढ़ गरीब माय-पापक संगे रहि रहल अछि।  गाम घरक सभ काज जेना माल-जालकेँ सेवा, घास करब, बौइनी करब सभ काज करैत अछि। अनुपम सुनरि देह मोनक मालकिन बुलकी। अपना सुन्नरता आकर्षण केर कारण गामक कतेको लोकक नजरिमे बसैक संगे धनिक दवंग राजकांतक बलात्कार केर सजा सेहो पबैत अछि। राघव बुलकीक प्रेम जेना, सुग्गा-मैनाक प्रेम। जेना हिर रांझाक प्रेम। जेना वसंत प्रकृति केर प्रेम। जेना सुर बाँसुरीक प्रेम। निश्छल, अलौकिक, प्रेमक पूर्णता, मधुर-मिलन भेला बादो ग्राम्य जीवन समाजक बुनल ताना बाना केर बुझैत एक रहितो समाजक नजरिमे एक नहि भय सकला।  उपन्यासकार अपन उपन्यासमें दुनूक यौवन, रुप, चरित्र, प्रेम, विरहकेँ एहेन सुन्नर शब्दक मालामे गूँथने छथि जेकर प्रशंसा केनाइ सूर्यकेँ दिया देखबय जकाँ होएत।

उपन्यास राघव बुलकी संगे संगे बहुत रास आरो कतेको पात्र चरित्र कथाकेँ अपनामे समटने अछि। एक तरफ़ राघव बुलकी, दू टा अलग अलग जातिकेँ होबाक कारणे समाजिक रूपसँ एक नहि भ सकल ओतय दोसर दिस नैना आ नन्द एक दोसरापर सर्वत्र समर्पण कय देला बादो सामजक सामने एक नहि भ पेला किएक तँ दुनू एक्के गोत्रसँ रहथि। नेना नन्दक प्रेमकेँ अपन करेजामें समटने नहि चाहितो एकटा द्वितीवरसँ ब्याहल जाइ छथि आ किछुए समयमे नन्दक वियोककेँ नहि सहि परलोक बासी भ जाइत छथि।

लखरु ख़लीफ़ा एक टा नामी पहलवान अपन ताक़त के जोरसँ समाजमे अन्यायके बले बहुते धन कमाइए। मुदा अंत काल गूँह गिजैत धरपरिवार समाज सभसँ दूर नरक केर यातना भोगैत अछि।

उपन्यासक एक-एकटा पात्र मानु जीवन्त हुए। शब्द आ दृश्यक अनुपम प्रस्तुति कैलाशजी कयने छथि। हुनक एहि उपन्यासक लेखनीमें एकटा आकर्षण अछि जे पाठककेँ पूरा उपन्यास पढ़ें लेल उत्साहित करैत अछि।

हाँ किछु वर्तनी सम्बंधित दोष अछि, जेकरा प्रकाशन हाउस आँगाक एडिशनमे ठीक कय लेता इ उम्मीद अछि।

डॉ. कैलाश कुमार मिश्र जीकेँ हुनक एहि अनुपम कृतिकेँ लेल बहुत बहुत बधाइ संगे  माय भगवतीसँ प्रार्थना कि अपने एनाहिते मैथिली साहित्यकेँ समृद्धि करैमे सदति लागल रही।

 

विधा : उपन्यास

पोथीक नाम : मनसरबी

भाषा :  मैथिली

लेखक: डॉ० कैलाश कुमार मिश्र

प्रकाशक :  मैत्रेयी प्रकाशन

प्रकाशन वर्ष: २०२५

मूल्य : ₹ २००/-

सोमवार, 3 मार्च 2014

मिथिलाक माटिसँ सिनेह राखू


सबरंगी बात, आलेख - डा० कैलाश कुमार मिश्र 
नेना जखन रही तँ माए सदिखन कहथि: "बंटि चुटि खाइ राजा घर जाइ , असगर खाइ डोमा घर जाइ" । ई  गप्प तखन कहथि जखन घरमे कोनो खेबाक किंवा खेलबाक बस्तु कम होइत छल आ हम सभ भाइ बहिन बेसीसँ बेसी लेबाक लेल झगड़ा करए लगैत रही। माए केर आज्ञा मुदा वात्सल्यसँ भरल ई होइत छल जे जतबे वस्तु अछि ओकरा अपनामे सामंजस्यक संग बांटि लिअ' । फेर की,जे कियोक भाइ बहिन बटैैत छलहुँ से पूर्ण निष्ठाक संग। सबहक मुँहपर प्रसन्नताक भाव। कमो  समानमे परिपूर्ण होबाक संतोष। हृदयसँ तिरपीत भेल मोन आ मस्तिष्क ।  ओहि समानपर सबहक अधिकार आ ओहि समानसँ सभकेँ सिनेह। जखन ई बात स्मरण करैत छी तँ बुझना जाइत अछि जे इहे बात मैथिली भाषाक प्रति समस्त मिथिलामे आ मिथिलासँ बाहर रहनिहार सभ वर्ग,सम्प्रदाय, जाति, धर्म आदि केर मैथिली समुदायमे किएक नहि होइत छन्हि?  कहीँ मैथिली भाषाक रस आ स्वरक बट्बारामे हमरा लोकनि छोट-पैघ, ऊँच-नीच, जाति-वर्ग क्षेत्र आदिक नामपर कुकरौझ तँ नहि करए लगैत छी?  ई बड़का प्रश्न अछि जकर तहमे जेनाइ आवश्यक। 
मैथिली भाषा आ साहित्यक तुलना कंसार वालीसँ कएल जा सकैत अछि। जखन नेना रही तँ बीचमे एक अधिबेसु महिला साँझ कए कंसार लगबैत छली। आमक गाछक छाहरिमे एकटा फुसही घर आ घरमे एकटा चुल्हा। चुल्हा जरेबाक लेल पात, बाँसक करची आ आन आन तरहक अनेरुआ जारनि। दूटा फुटलाहा तौलाकेँ खपड़ि चुल्हामे चढ़ल। एकटामे बालु आ दोसरमे अन्न भुजबाक प्रयास। गामक घर सभसँ बच्चा एवं आन आन लोक सभ अनाज जेना चाउर, गहुम,बदाम केराउ आदि कंसार वाली लग लए कऽ अबैत छल। कनसार वाली ओहि अन्न सभकेँ दक्षताक संग भुजि दैत छलैक आ बदलामे एक दू मुठ्ठी अन्न अपन मेहनतानाक तौरपर राखि लैत छली। ओहि कंसारपर भुजा भुजेबाक अधिकार सबहक छलैक। सभकेँ ओहि महिलापर विश्वास छलैक। 
हमरा जनैत मैथिलीकें ओहिना सभ वर्ग, जाति आ क्षेत्र (मिथिलाक क्षेत्र )क पिआर आ सिनेह भेटबाक चाही  मुदा एहेन स्थिति अछि नहि। हमरा लोकनि छोट-छोट गप्पपर लड़ैत छी। हालहिँमे जगदीश प्रसाद मंडलकेँ गुवाहाटीक समारोहमे मुख्य अतिथि नहि बनए देल गेलन्हि। नचिकेता जीकेँ पोथीपर हमरा लोकनि उचित धियान नहि देलहुँ। कियोक बजलाह जे विद्यापति हजाम छलाह तँ बहुतो रास लोक आमील पी लेलन्हि। नारा देमय लगलाह जे विद्यापति ब्राह्मण छलाह।  मुख्य गप्प ई अछि जे विद्यापति मिथिलाक गौरव छथि। एक घरीकेँ लेल मानि लिअ' जे विद्यापति हजाम छलाह तँ की ओ महान नहि छथि? महानताकेँ जाति धर्मसँ की मतलब ? विद्यापति जे छथि वा जे छलाह से अपूर्व छलाह। जखन ई विवाद पढ़लहुँ आ पक्ष आ विपक्ष दुनूक वार्तालाप देखल तँ मोन घोर भ गेल। इहे थिक मैथिलीक दशा। हमरा लोकनि मैथिलीक नामपर जाति-पांतिक संकीर्णतामे डूबल छी। धिक्कार अछि!
एखन एक नीक परम्पराक विकास भए रहल अछि। तथाकथित छोट जातिमे मैथिली भाषा, साहित्यक प्रति रुझान बढ़ल अछि। नव-नव कवि , लेखक साहित्यकार, सृजनशीलतामे उत्साहित छथि। नव बिम्ब नब भावनाक जन्म भए रहल अछि। हलांकी किछु लोक जे पहिनेसँ बिना जनने मैथिलीपर धाक जमेने छथि से लोकनि एहि नव रचनाकार लोकनिकेँ अस्तित्वकेँ स्वीकार करबाक लेल तैयार नहि छथि। होइत छन्हि जेना हुनकर बपौती सम्पतिपर दोसरो लोक आक्रमण कए रहल होन्हि। 
ऐना किएक ? मैथिली लोक भाषा अछि। लोकभाषा ओ भेल जकरा लोक व्यवहारमे प्रयोग कएल जाइत होइ। लोकभाषा किसान,खेतिहर, बोनिहर,आ विद्यार्धि-विद्वान, महिला-पुरुष, आ कार्यालय सभकेँ जोड़य बला भाषा थिक। लोकभाषा ज्ञान आ शिक्षाकेँ सम्हारै बला भाषा थिक। लोकभाषा सृजनताक भाषा थिक। लोकभाषा सबहक भाषा थिक । एहि भाषामे अगर अनेरे अतिक्रमण करबैक, एकर आत्माकेँ खंडित कए संस्कृत एवं आन भाषाक कठिन शव्द घुसेरि एकरा जटिल बनेबैक तँँ ई किछु फंतासि लोकक भाषा भ' जाएत। राजनीतिकरण करबैक तँ भाषा अपन साँस तोरए लागत। निष्प्राण होबए लागत।
हमरा लोकनि विद्यापति केर माला जपैत छी मुदा बिसरी जइत छी जे विद्यापति  देसी भाषाक पक्षधर छला। हुनकर गीत आ लोक रचनाकेँ  खेतक हरवाहासँ मंदिरक पुजारी धरि सभ पसीन करैत छल। मिथिलाक महिला लोकनि एक कंठसँ दोसरक कंठक मध्य पीढ़ी दर पीढ़ी विद्यापति पदावलीकेँ जीअने रहलीह।  नहि कोनो पाण्डुलिपि आ नहिए  कोनो पुस्तकालयकेँ  जरुरत परलनि  हुनका लोकनिकेँ । एतवे नहि कतेको
महिला आओर  पुरुष तँ  विद्यापति केर पदावली परमपरामे अबै बला कतेको  रचनाकेँ  विद्यापति नामे जोड़ि देलनि।
बादमे मैथिलीकेँ आवसकतासँ बेसी संस्कृतीकरण होबअ  लागल। लोक सब संस्कृतक शब्दावलीसँ  मैथिलीकेँ  अनेरे जनमानससँ  दूर करबाक प्रकृतिमे लागि  गेलाह । इमहर खाँटी  शब्दावलीक प्रयोग करय वालाकेँ  उपेक्षा  होबअ लागल। खाँटी  शब्दक उपयोग केनाइ  अशिक्षा  आ अज्ञानताक परिचापक होमय लागल। फेर की छल मैथिली छोटसँ छोट होइत गेलीह  अतवे नहि, नहीं मैथिली भाषाकेँ क्षेत्रीयताक आधारपर सेहो बांटी देल गेल।
उँच -नीच कए  देल गेल। पछिमाहा-दछिनाहा, पुबहा कहि ओहि क्षेत्रक लोकक उपहास केलक।  खांटी  मैथिली विलुप्त भेल जा रहिल छली आ संस्कृत  निष्टमैथिली किछु वर्ग आ समुह  केर बंदनी भऽ गेल छली। भाषाकेँ  वर्ग विशेषसँ जोड़ने विधवंसकारी भऽ  सकैत अछि।  एकर जीवंत उदहारण थिक उर्दू भाषा। उर्दूक अर्थ भेल बजार  एकर विकास सैनिक केन्तेनोमेंट एरियामे सैनिक सब जे विभिन्न प्रान्तसँ होएत छल ओ सब स्थानीय लोक सभसँ आपसमे  वार्तालाप करबाक हेतु सम्प्रेषण केर भाषा अथवा बोली विकसित केलन्हि।  बोलीमे कतेको  तरहक भाषाक कतेको  तरहक शव्दक प्रयोग भेलैक सहजताक संग धीरे धीरे उर्दू विकसित होमय लागल। उर्दू  हिन्दवी परम्परामे आगा बढअ लागल। समस्त उत्तर भारत पंजाब आजुक पाकिस्तान पूर्वी भारत अर्थात बिहार आ पूर्वी उत्तर प्रदेश  धरि  ई  प्राणवान भ गेल। ई जनमानस केर भाषा भ  गेल। प्रेमचंदसँ  ल क आगाँ  सब कियोक उर्दूमे लिखय लगलाह। पूरा पंजाब
हरयाणा आ कश्मीरक हिस्सा  उर्दूमय भ गेल। एहि भाषामे रचनाक ढेर लागि  गेल। बिभाजनक बाद भारत आ पाकिस्तान दू भाग भ गेल। जे मुसलमान भारतमे बचल रहि  गेलाह कहि नहि किएक उर्दूकेँ मुसलमानक अस्तित्वसँ जोड़ि कए देखए लगलाह। राजनीतिसँ प्रेरित भए नेतासभ उर्दूकेँ मुसलमान वर्गक भाषासँ जोड़ि कए देखए लगलाह। रचना-धर्मितामे मंदी आबए लागल। हिन्दू लोकनि अपनाकेँ हिंदीसँ जोड़लनि। फिराक गोरखपुरी, गोपीचंद नारंग, गुलजार सब कियो उर्दूमे लिख एहि भाषाकेँ समृद्ध केलनि। मुदा उर्दुक गध्य साहित्यमे इजाफा नहि भेल। लोकक मोन टूटि गेलैक। पध्य तँ किछु प्राणवान रहबो केएल मुदा साहित्यक पतन सहजहि  परिलक्षित होइत छैक। जँ मैथिलीकेँ सेहो अहिना रखलहुँ तँ मैथिलीक अस्तित्व डामाडोल  भए जाएत।
मैथिलीमेँ सर्वहारा विचारधाराक विकास केनाइ, नव शव्दकोष आ नव शव्दावलीक विकास, लोक  परम्पराकेँ जोड़नाइ सब वर्गक भाषा आ मनोदशा बुझनाइ आवश्यक अछि।  आबू सब गोटे मिल कए मैथिली भाषा आ साहित्यक विकास करी। तखने एकटा ठोस  मैथिली भाषा आ साहित्यक विकास संभव अछि।   
।।जयति मिथिला, जयति मैथिली ।।
(सभार : मिथिलांचल टुडे पत्रिका)