जीवन मृत्युकेँ छोर तोहर हाथमे
कठपुतली इ जग डोर तोहर हाथमे
हम सरनागत एलौं तोहर सरनमे
सगरो कष्टक तोड़ तोहर हाथमे
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
मैथिली साहित्य आ भाषा लेल समर्पित Maithiliputra- Dedicated to Maithili Literature and Language
जीवन मृत्युकेँ छोर तोहर हाथमे
कठपुतली इ जग डोर तोहर हाथमे
हम सरनागत एलौं तोहर सरनमे
सगरो कष्टक तोड़ तोहर हाथमे
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
जिनका देलौं करेजा ओ वेपारी
मोनसँ खलेलनि जनि क हमर लाचारी
हम रहि सिधा साधा सज्जन बेचारी
ओ पहुँचल फेरल बड़ पैघ खेलाड़ी
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
हे कृष्ण फेर अवतार एकबेर लिअ
पापी कुकरमी सभकेँ आबि घेर लिअ
धरती इ अहाँक डूबि रहल अधर्ममे
जतरा आबि एक बेर अपन फेर लिअ
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
हमहूँ खेत आइ बोटीकेँ रोपलौं
पोसै लेल पेट झूठक हर जोतलौं
कारी कोटसँ कोटमे निसाफ ककरा
टाका पाबि आँखि बान्हि दफा जोखलौं
✍🏻जगदानन्द झा ‘मनु’
तोरा नहि हम छोड़लौं नहि हम बेवफा
तोरा बिन नहि मरलौं नहि हम बेवफा
तोहर प्राण गेल बुझि नहि जीवैत ‘मनु’
बिन काठीए जरलौं नहि हम बेवफा
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
पागल हम दुनियामे पियार तकै छी
भलमानुस सब सगर वेपार तकै छी
नै कोनो दाम मनुख आ मनुखताकेँ
स्वार्थी लोकसँ ‘मनु’ सरोकार तकै छी
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
एतेक नेहमे लीबैत किएक छी
दुनिया पुछलनि हम जीवैत किएक छी
सभ बुझला उत्तर ‘मनु’ अहूँ इ जुनि पूछू
दिन राति एतेक पीबैत किएक छी
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
घुमि कनखीसँ कनि जे अहाँ ताकि देलहुँ
तन मन अपन एहिपर हम हारि देलहुँ
नहि आब बैकुंठकेँ रहि गेल इच्छा
सगरो अहाँकेँ लेल ‘मनु’ बारि देलहुँ
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
जे घाव अहाँ हमर करेजकेँ देलहुँ
सबटा ओ दर्द दुनियाँसँ नुका लेलहुँ
मुस्कीसँ हमर नै बुझू जे हम खुश छी
खूनक घुट अहाँक खुशीमे पी गेलहुँ
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
हे कृष्ण गोविंद मुरारी मिता हमर
सगरो दुनिया केर मालिक पिता हमर
गेलअ छोरि किएक तू ‘मनु’क करेजा
घुरि आबअ नहि तँ सजत आब चिता हमर
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
सिस्टम आइकेँ किए बबाल बनल अछि
नेता सभ तँ एकटा जपाल बनल अछि
बड़ बड़ बागर बिल्ला राज चलबैए
जनताक प्राणेपर सबाल बनल अछि
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
मीरा केर हरने अहाँ कते दुख छी
खा साग विदुर केर भेल बड्ड सुख छी
हे माधव ‘मनु’ केर अपन भक्ति दय दिअ
दुनियामे सबसँ सुन्नर अहाँक मुख छी
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
पाथर करेजा हमर प्रभु कोमल करु
एतअ रहि अहाँ एहेन सिनेहल करु
संसारक जंजालसँ मुक्ति दय ‘मनु’केँ
अपने चाकरीमे सदिखन राखल करु
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
रुबाइ १
आँचर नहि उठाबू आँखिसँ पीबय दिअ
हम जन्मसँ पियासल करेज जुड़बय दिअ
ताड़ीसँ बेसी निसा अहाँक हँसीमे
प्रेमक निसामे अपन कनी जीबय दिअ
रुबाइ २
पीलौं हम तँ लोक कहलक शराबी अछि
एतअ के नहि कहु बहसल कबाबी अछि
बुझलौं अहाँ सभ दुनियाक ठेकेदार
हमरो आँखिसँ देखू की खराबी अछि
रुबाइ ३
नै पीब शराब तँ हम जीब कोना कय
फाटल करेजकेँ हम सीब कोना कय
सगरो जमाना भेल दुश्मन शराबक
सबहक सोंझा तँ आब पीब कोना कय
रुबाइ ४
पीलौं शराब तँ दुनियाँ कहलक बताह
बिन पीने ई दुनियाँ भेल अछि कटाह
जे नहि पीलक कहाँ अछि ओकरो महल
पीबिए क' किएक नहि बनि जाइ घताह
रुबाइ ५
भेटल नहि सिनेह तेँ शराबे पीलौं
दर्शन हुनक हरदम गिलासमे केलौं
के अछि कहैत शराब छैक खराब ‘मनु’
बिन रहितौं हुनक शराबेसँ हम जीलौं
रुबाइ ६
पीलौं नहि तँ की छै शराब बूझब की
बिन पीने दुनियाँमे करब तँ करब की
सभ अछि एक दोसरकेँ खून पीबैत
खून छोड़ि शराबे पी कय देखब की
रुबाइ ७
एतेक नेहमे लीबैत किएक छी
दुनिया पुछलनि हम जीवैत किएक छी
सभ बुझला उत्तर ‘मनु’ अहूँ इ जुनि पूछू
दिन राति एतेक पीबैत किएक छी
रुबाइ ८
कर्जा कय क जीवन हम जीव रहल छी
फाटल अपनकेँ कहुना सीब रहल छी
सभ किछु लूटा कय ‘मनु’ अपन जीवनकेँ
निर्लज जकाँ हम ताड़ी पीब रहल छी
रुबाइ ९
गोरी तोहर काजर जान मारैए
छौंरा सभ सगर हाय तान मारैए
पेएलक बड़ भाग काजर विधातासँ
तोहर आँखिमे कते शान मारैए
रुबाइ १०
लाली मानि कय अहाँ ठोरसँ लगा लिअ
आँखिक अपन करीया काजर बना लिअ
एना जुनि अहाँ कनखी नजरिसँ देखू
प्रियतम बना ‘मनु’केँ करेजसँ लगा लिअ
रुबाइ ११
फूसियो जँ कनी अहाँ इशारा करितहुँ
भरि जीवन हम अहीँक बाटमे रहितहुँ
मुस्कीमे अहाँक अपन मोन लूटा क’
तरहत्थीपर जान लेने हम अबितहुँ
रुबाइ १२
साँवरिया पिया अहाँ ई की कएलहुँ
साउन चढ़ल छोड़ि चलि कोना गएलहुँ
शीतल हवा बहल सिहरैए हमर तन
कोना रहब बिनु अहाँ बुझि नै पएलहुँ
रुबाइ १३
गोरी तोर मुस्कीमे छौ जहर भरल
नै एना मुँह खोल कते घायल परल
तोहर फुलझड़ी सन मारुक हँसी सुनि क
भेटत बाटपर कतेको छौंड़ा मरल
रुबाइ १४
तोरा देख सुन्नरी सीटी बजैए
धरकन बंद ई कतेकोकेँ करैए
परमाणु बम दुनिया फालतू बनेलक
तोहर कनखीसँ मनुख लाखो मरैए
रुबाइ १५
जे घाव अहाँ हमर करेजकेँ देलहुँ
सबटा ओ दर्द दुनियाँसँ नुका लेलहुँ
मुस्कीसँ हमर नै बुझू जे हम खुश छी
खूनक घुट अहाँक खुशीमे पी गेलहुँ
रुबाइ १६
घुमि कनखीसँ कनि जे अहाँ ताकि देलहुँ
तन मन अपन एहिपर हम हारि देलहुँ
नहि आब बैकुंठकेँ रहि गेल इच्छा
सगरो अहाँकेँ लेल ‘मनु’ बारि देलहुँ
रुबाइ १७
नाथक पजारल नेह धधैक रहल अछि
असगर करेजा हमर तड़ैप रहल अछि
लगने कोन अहाँसँ हम नेह लगेलौं
प्रेमक गरमीसँ देह बरैक रहल अछि
रुबाइ १८
दुनिया जँ नै पुछलक तँ कोनो बात नहि
राखू मोन अहाँ इ तेहनो बात नहि
चिन्है सगर समाज आइ धनीकेकेँ
‘मनु’केँ जँ जाइ बिसरि एहनो बात नहि
रुबाइ १९
तोरा नहि हम छोड़लौं नहि हम बेवफा
तोरा बिन नहि मरलौं नहि हम बेवफा
तोहर प्राण गेल बुझि नहि जीवैत ‘मनु’
बिन काठीए जरलौं नहि हम बेवफा
रुबाइ २०
आपस क दे ओ हमरा हमर बितल दिन
किरया तोरा द दे ओ सगर बितल दिन
रहि जाएब आब असगरे तोरा बिन
नै यादि करब संगे तोहर बितल दिन
रुबाइ २१
छी हम जरैत की अहाँ प्रकाशित रही
सुख लेल अहाँक खुशीसँ हम आँच सही
बातीकेँ जरैत ई दुनिया देखलक
बनि तेल हम तँ जरलौं दुख कतेक कही
रुबाइ २२
पागल हम दुनियामे पियार तकै छी
भलमानुस सब सगर वेपार तकै छी
नै कोनो दाम मनुख आ मनुखताकेँ
स्वार्थी लोकसँ ‘मनु’ सरोकार तकै छी
रुबाइ २३
बाबूजीक करेजमे सदिखन रहलहुँ
तन मन धन हुनक सगरो हम पेएलहुँ
दाही पानि रौदसँ सदिखन बचेलन्हि
सेबाक बेड़मे हम परदेश भगलहुँ
रुबाइ २४
बाबूजी देह जान सबटा देलन्हि
जे किछु छी एखन बाबूजी केलन्हि
भूखे रहि अपने हमर पेट भरलन्हि
सुधि बिसरि अपन हमरा मनुख बनेलन्हि
रुबाइ २५
फगुआ अहाँक बिनु कतेक बेरंग अछि
बाँकी बस अहाँक यादेटा संग अछि
एही दुनियासँ जहन अहाँ चलि गेलौं
बुझलौं कतेक कठिन जीवनक जंग अछि
✍🏻जगदानन्द झा ‘मनु’