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शनिवार, 14 जुलाई 2012

गजल- सदरे आलम "गौहर"


जैह देखू सैह बाजू हम त यैह पढने छी
राति  के दिन कहैले हमरा केना कहै छी

चम्चागिरी चाटुकारिता नहि केलहुँ हम
ताहि  द्वारे फूसक घर में हम रहै छी

मिथिला देशक वासी छी हम मैथिली बाजब
अपन इ पहचान नहि कहियो बिशरै छी

सभ दिन एके रंग नहि होएत छै कान धरु ई
कहियो नाह पर कहियो गाडी पर नाह देखै छी

सतयुग कलयुग में नहि हम मोन के ओझराबी
दुनियाँ त ठीके छै जँ हम  ठीक रहै छी

हँसै मे सभ हँसत कानै मे नहि कानत
कानि के देखु तखन कहब जे ठीक कहै छी

सदरे आलम "गौहर"
पुरसौलिया, जयनगर, मधुबनी
मो. 09006326629

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