की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। sadhnajnjha@gmail.com पर e-mail करी Or call to Manish Karn Mo. 91 95600 73336

शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

भक्ति गजल

आई महाशिवरात्रि केर शुभ अवसर पर श्रीशिव जीकेँ कृपासँ प्रस्तुत अछि एकटा शिव गजल, भक्ति गजल 

गजल 

चलू देखब हे बहीना शिवकेँ 

अपन गौरीकेँ सजनमा शिवकेँ 

 

सभक ई खाली भरै छथि झोली 

सरण आइब जे सुमरला शिवकेँ 

 

गरीबोकेँ छथि इहे सुननाहर 

दियौ जल भरि एक लोटा शिवकेँ 

 

मनुख दानव देव भूत प्रेतो 

सगर दुनिया मिल मनेला शिवकेँ 

 

सिया रामोकृष्ण हुनके पुजलनि 

बनेलनि सगरो अराध्या शिवकेँ 

 

कृपानिधि कैलाशवासी जय भव

चरण वंदन जग रचैता शिवकेँ 

 

मनोरथ सब पूर्ण करता शम्भू 

कहल ‘मनु’ जे मनसँ भजता शिवकेँ 

(मात्राक्रम- 1222-2/ 1222-2)

सुझाव, मार्गदर्शन व आलोचना सादर आमंत्रित अछि। 

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

रविवार, 5 फ़रवरी 2023

गजल

जखन कखनो जे सोचब हमरा

अपन लअगेमे पायब हमरा

 

गजल हमर शव्द बनि तनमनमे 
कचोटत तँ अहाँ ताकब हमरा 

 

बहुत दुर छी कोनो बाते नै

अपन मोनेमे देखब हमरा


दुनू दू तन  एक्के जिनगी छी

अहाँ कखनो नै बिसरब हमरा


अहाँकेँ हम छी कहलौं जे ‘मनु’

कि मुइला बादो मानब हमरा 

(बहरे गोविंद, मात्राक्रम : 12 22 22 22 2, सभ पाँतिमे। दोसर शेरकेँ दोसर पाँतिमे दूटा अलग-अलग लघुकेँ दिर्ध मानक छुट लेल गेल अछि)

 ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

रविवार, 29 जनवरी 2023

गजल

दर्द देखायब करेजाक मानब की

काल्हि सपनोमे हँसी छोरि कानब की 

 

प्रेम पुरुषक छैक गोबर अहाँ कहलौं

चीर देखायब करेजा तँ गानब की

 

दोख सभमे नै कतउ एकमे हेते

संग हमरा ओहिमे सभक सानब की 

 

आइ छै अन्हार सगरो अहाँ कहलौं

आँखि मुनि लाइटसँ अन्हार आनब की

 

कनिक हमरोपर भरोसा क कय देखू

प्रेम ककरा छै कहै  'मनु'सँ जानब की

(बहरे कलीब, मात्राक्रम : 2122-2122-1222)

 ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

शनिवार, 14 जनवरी 2023

जगदानन्द झा ‘मनु’क पच्चीस टा रुबाइ एक्केठाम

रुबाइ १
आँचर नहि उठाबू आँखिसँ पीबय दिअ
हम जन्मसँ पियासल करेज जुड़बय दिअ

ताड़ीसँ  बेसी निसा  अहाँक  हँसीमे

प्रेमक निसामे अपन कनी जीबय दिअ

 

 

रुबाइ २

पीलौं हम तँ लोक कहलक शराबी अछि 

एतअ के नहि कहु बहसल कबाबी अछि

बुझलौं अहाँ सभ   दुनियाक ठेकेदार 

हमरो  आँखिसँ देखू की खराबी अछि  

 

 

रुबाइ 

नै पीब शराब तँ हम जीब कोना कय

फाटल करेजकेँ हम सीब कोना कय

सगरो जमाना भेल दुश्मन शराबक

सबहक सोंझा तँ आब पीब कोना कय

 

 

रुबाइ ४

पीलौं शराब तँ दुनियाँ कहलक बताह 

बिन पीने ई दुनियाँ भेल अछि कटाह

जे नहि पीलक कहाँ अछि ओकरो महल

पीबिए क' किएक नहि बनि जाइ घताह

 

 

रुबाइ ५

भेटल नहि सिनेह   तेँ शराबे पीलौं

दर्शन हुनक हरदम गिलासमे केलौं 

के अछि कहैत शराब छैक खराब ‘मनु’

बिन रहितौं हुनक शराबेसँ हम जीलौं

 

 

रुबाइ 

पीलौं नहि तँ की छै शराब बूझब की 

बिन पीने दुनियाँमे करब तँ करब की 

सभ अछि एक दोसरकेँ खून पीबैत 

खून छोड़ि शराबे पी कय देखब की 

 

 

रुबाइ  

एतेक नेहमे लीबैत किएक छी

दुनिया पुछलनि हम जीवैत किएक छी 

सभ बुझला उत्तर ‘मनु’ अहूँ इ जुनि पूछू 

दिन राति एतेक पीबैत किएक छी 

 

 

 

रुबाइ

कर्जा कय क जीवन हम जीव रहल छी 

फाटल अपनकेँ कहुना सीब रहल छी 

सभ किछु लूटा कय ‘मनु’ अपन जीवनकेँ

निर्लज जकाँ हम ताड़ी पीब रहल छी   

 

 

 

रुबाइ ९

गोरी तोहर काजर जान मारैए 
छौंरा सभ सगर हाय तान मारैए 
पेएलक बड़ भाग काजर विधातासँ 

तोहर आँखिमे कते शान मारैए 

 

 

रुबाइ १०

लाली मानि कय अहाँ ठोरसँ लगा लिअ

आँखिक अपन  करीया काजर बना लिअ

एना जुनि अहाँ   कनखी नजरिसँ देखू
प्रियतम बना ‘मनु’केँ करेजसँ लगा लिअ

 

रुबाइ ११

फूसियो जँ कनी अहाँ इशारा करितहुँ

भरि जीवन हम अहीँक बाटमे रहितहुँ

मुस्कीमे अहाँक अपन मोन लूटा क’

तरहत्थीपर जान लेने  हम अबितहुँ

 

 

रुबाइ १२

साँवरिया पिया अहाँ की कएलहुँ   

साउन चढ़ल छोड़ि चलि कोना गएलहुँ

शीतल हवा बहल सिहरैए हमर तन

कोना रहब बिनु अहाँ बुझि नै पएलहुँ  

 

 

रुबाइ १३

गोरी तोर मुस्कीमे छौ जहर भरल 

नै एना मुँह खोल कते घायल परल 

तोहर फुलझड़ी सन मारुक हँसी सुनि क

भेटत बाटपर कतेको छौंड़ा मरल 

 

 

रुबाइ १४

तोरा देख सुन्नरी सीटी बजैए

धरकन बंद ई कतेकोकेँ करैए

परमाणु बम दुनिया फालतू बनेलक

तोहर कनखीसँ मनुख लाखो मरैए

 

 

रुबाइ १५

जे घाव अहाँ हमर करेजकेँ देलहुँ

सबटा ओ दर्द दुनियाँसँ नुका लेलहुँ  

मुस्कीसँ हमर नै बुझू जे हम खुश छी

खूनक घुट अहाँक खुशीमे पी गेलहुँ

 

 

रुबाइ १६

घुमि कनखीसँ कनि जे अहाँ ताकि देलहुँ

तन मन अपन एहिपर हम हारि देलहुँ

नहि आब बैकुंठकेँ रहि गेल इच्छा

सगरो अहाँकेँ लेल ‘मनु’ बारि देलहुँ

 

 

रुबाइ १७

नाथक पजारल नेह धधैक रहल अछि

असगर करेजा हमर तड़ैप रहल अछि 

लगने कोन अहाँसँ हम नेह लगेलौं

प्रेमक गरमीसँ देह बरैक रहल अछि

 

 

रुबाइ १८

दुनिया जँ नै पुछलक तँ कोनो बात नहि

राखू मोन अहाँ इ तेहनो बात नहि

चिन्है सगर समाज आइ धनीकेकेँ

‘मनु’केँ जँ जाइ बिसरि एहनो बात नहि

 

रुबाइ १९

तोरा नहि हम छोड़लौं नहि हम बेवफा

तोरा बिन नहि मरलौं नहि हम बेवफा

तोहर प्राण गेल बुझि नहि जीवैत ‘मनु’

बिन काठीए जरलौं  नहि हम बेवफा

 

 

रुबाइ २०

आपस दे हमरा  हमर बितल दिन

किरया तोरा दे   ओ सगर बितल दिन

रहि जाएब आब असगरे तोरा बिन

नै यादि करब संगे तोहर बितल दिन

 

 

रुबाइ २१

छी हम जरैत   की अहाँ प्रकाशित रही

सुख लेल अहाँक खुशीसँ हम आँच सही 

बातीकेँ जरैत   ई दुनिया देखलक

बनि तेल हम तँ जरलौं दुख कतेक कही

 

 

रुबाइ २२

पागल हम दुनियामे पियार तकै छी

भलमानुस सब सगर वेपार तकै छी

नै कोनो दाम मनुख मनुखताकेँ

स्वार्थी लोकसँ ‘मनु’ सरोकार तकै छी

 

 

 

रुबाइ २३

बाबूजीक करेजमे  सदिखन रहलहुँ

तन मन धन हुनक सगरो हम पेएलहुँ 
दाही पानि रौदसँ सदिखन बचेलन्हि

सेबाक बेड़मे हम परदेश भगलहुँ 

 

 

रुबाइ २४

बाबूजी देह जान सबटा  देलन्हि 
जे किछु छी एखन बाबूजी केलन्हि
भूखे रहि अपने   हमर पेट भरलन्हि
सुधि बिसरि अपन हमरा मनुख बनेलन्हि

 

 

रुबाइ २५

फगुआ अहाँक बिनु कतेक बेरंग अछि 

बाँकी बस अहाँक यादेटा संग अछि

एही दुनियासँ जहन अहाँ चलि गेलौं 

बुझलौं कतेक कठिन जीवनक जंग अछि

                  ✍🏻जगदानन्द झा ‘मनु’